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१८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ इक्कीसवीं सदी की दहलीज पर खड़ा हमारा धर्मसंघ अध्यात्म की दृष्टि से आज विश्व के किसी भी धर्मसंघ से बड़ा नहीं है तो कम तो है ही नहीं। बड़ा कहूं तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी। हमें याद है दिल्ली का वह प्रसंग। एक दिन आचार्य कृपलानी, हरिभाऊ उपाध्याय, जैनेन्द्रकुमारजी आदि अनेक लोग आए, बोले-'आचार्यश्री! आज हम आपसे एक नई बात करने आए हैं।' गुरुदेव ने उन्हें कहने की अनुमति प्रदान की। मैं पास ही बैठा था। वे बोले- 'अणुशक्ति से संत्रस्त इस विश्व को आज अणुव्रत की सबसे ज्यादा जरूरत है और आप अध्यात्म का नेतृत्व करने में हमें सबसे सक्षम व्यक्ति दिखाई देते हैं। हमारी प्रार्थना है कि आप अपने इस संप्रदाय के भार को किसी दूसरे को सौंप दें और पूरे विश्व के लिए अध्यात्म का नेतृत्व करें।
हमें अध्यात्म का बल मिला है। जहां यह बल नहीं होता, धर्म के नाम पर झूठा प्रलोभन और आश्वासन मिलता है, वहां विडंबनाएं पनपती हैं, विकास नहीं होता। आज तेरापंथ धर्मसंघ अध्यात्म के उस शिखर पर है, जहां से निकला हुआ शब्द विश्व में गुंजायमान होता है। इस प्रसंग में याद आ रहे हैं श्रीमन्नानारायण के वे शब्द। महरौली के इसी अध्यात्म साधना केन्द्र में इक्कीस दिन के शिविर के दौरान उन्होंने कहा था-'इस (तेरापंथ) मंच से जो भी बात निकलेगी, मेरा विश्वास है कि वह पूरे विश्व को प्रभावित करेगी। सारा संसार उसे सिर झुकाकर स्वीकार करेगा।' समाधान का बल पांचवां बल है-युग की समस्या को समाधान देने का बल। हमारे पास यह बल न होता तो हमारी आवाज कोई न सुनता। दिल्ली का यह लगभग दस माह का प्रवास समाधान उपलब्ध कराने का प्रवास रहा है। पूज्य गुरुदेव ने दिल्ली के लोगों की समस्या, राजनेताओं की समस्या, चिकित्सकों की समस्या, साहित्यकारों की समस्या, सबकी समस्याओं को समाधान दिया और वह समाधान इतना मान्य हुआ कि समाचारपत्रों
और दूरदर्शन के द्वारा सारी दुनिया को पता चला। मैं मानता हूं कि जो धर्मगुरु युग की समस्या को नहीं जानता, जानता है और उसको
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