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२६. मानवीय एकता के सजग प्रहरी : आचार्य तुलसी
प्राणी-मात्र की एकता का लघु संस्करण है मानवीय एकता। मानवीय एकता का लघुतर संस्करण है राष्ट्रीय एकता। राष्ट्रीय एकता का लघुतम संस्करण है सामाजिक एकता। प्राणीमात्र की एकता पर्यावरण की सुरक्षा का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। मानवीय एकता शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का मौलिक सूत्र है। राष्ट्रीय एकता विकास का उपादान सूत्र है। सामाजिक एकता सद्भावना का आधारसूत्र है। आचार्य तुलसी ने इन चारों स्तरों पर काम किया है। उनका मत है-व्यापक हित को ध्यान में रखे बिना सीमित हित को भी साधा नहीं जा सकता।
पर्यावरण की समस्या जागतिक समस्या है। इस समस्या के समाधान का रचनात्मक पहलू माना जाता है, पर्यावरण प्रदूषण को मिटाने के साधनों का विकास किन्तु इसका नकारात्मक पहलू अधिक मूल्यवान् है। अनावश्यक हिंसा, जंगलों की कटाई, पानी का अपव्यय, भूमि का अतिरिक्त दोहन-ये सब चले और प्रदूषण को मिटाने के लिए कुछ विकल्प खोजे जाएं, इन दोनों में संगति नहीं है। इस तथ्य को ध्यान में रखकर अनावश्यक हिंसा के वर्जन पर बल दिया गया।
मानवीय एकता का बाधक तत्त्व है राष्ट्रवाद अथवा राष्ट्रीय कट्टरता। अपने राष्ट्र की समृद्धि के लिए दूसरे राष्ट्र के हितों को कुचलना-यह कूटनीति का चातुर्यपूर्ण जाल है। इस जाल को फैलाने में अनेक राष्ट्र लगे हुए हैं। अणुव्रत ने राष्ट्रवाद की सीमा लांघकर मानवीय एकता का संदेश जन-जन तक पहुंचाया।
राष्ट्रीय एकता कोई राजनीति अथवा चुनावी घोपणा-पत्र नहीं है। भाषा, प्रान्त, जाति और सम्प्रदाय की भेदधारा में सांस्कृतिक अभेद की स्थापना ही राष्ट्रीय एकता का प्राणतत्त्व है। गुरुदेव ने आध्यात्मिक और
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