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परिवर्तन की परम्परा : २ १८७ आर्यभट्ट से पहले और वेदांग जयोतिष के बाद, बीच का एक ऐसा शून्यकाल आता है कि उस समय का न कोई साहित्य मिलता है और न कोई सिद्धांत। सूर्य-प्रज्ञप्ति सूत्र ही उसकी पूर्ति करता है। इतना महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ संसार में दूसरा नहीं है। उन्होंने उस पर खोज की है, अनेक स्थलों की व्याख्या की है। उनका मानना है कि जब इस ग्रन्थ के तथ्य वैज्ञानिकों के समक्ष प्रस्तुत होंगे तब कुछ नयी मान्यताएं स्थापित हो सकती हैं। गर्ग ने भौतिकीशास्त्र पर जो शोध-प्रबन्ध लिखना प्रारम्भ किया था, आज तीन वर्षों के बाद, अब वह मानने लगा है कि उसने जैन गणित का विषय न लेकर भूल की है।
कुछ वर्ष पूर्व म्यूनिख में एक कांफ्रेंस हुई थी। उसका विषय था ‘सांख्यिकी' (Statistics)। उस परिषद् में प्रो. पी. सी. महलनोबिस (Mahalanobis) ने सांख्यिकी पर अपना निबंध पढ़ा था। उन्होंने यह प्रतिपादित किया था कि सांख्यिकी का मूल आधार है-सप्तभंगी, स्याद्वाद की सप्तभंगी। स्याद्वाद की सप्तभंगी के जो सात मूलभूत सिद्धांत हैं वे ही सिद्धांत सांख्यिकी के हैं। उनके पत्र में सप्तभंगी को इतना महत्त्व दिया गया है कि हमें स्वयं आश्चर्य होता है। बड़ा महत्त्वपूर्ण पत्र था वह।। ___ आज जैन गणित, जैन खगोल आदि की नयी-नयी किरणें बिखर रही हैं। इन जैन विद्याओं से जैन लोग अपरिचित हैं। आज तक जैन-क्षेत्र में सबसे अधिक काम किया है जैनेतर विद्वानों ने। ऐसी स्थिति में क्या यह हमारे लिए चिन्तन की बात नहीं है? __ जैन विश्वभारती को आप केवल बड़े-बड़े मकानों में देखते हैं इसीलिए यह प्रश्न करते हैं कि साधुओं को यह कैसे कल्पता है? साधु मकान की कामना नहीं करते। वे यह अवश्य चाहते हैं कि हमारी जैन विद्याएं, जो आज लुप्तप्राय हैं, जिन पर आज भी कम खोज हो रही है, जिनका प्रचार कम हो रहा है, जिनकी खोज पूर्वाचार्यों ने कर ली थी, जो निष्पत्तियां आज छिपी पड़ी हैं, उस धरोहर को हम आज विश्व के सामने रखें और जैन विद्याओं को आगे लाएं। यह कामना है हमारी। यह सही है कि इसकी पूर्ति के लिए अर्थ और मकान भी आवश्यक होंगे और भी हजारों चीजें आवश्यक होंगी। पर साधु अपनी सीमा में
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