Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 228
________________ २१४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ जैसे-चतुर्दशी का सूर्य उगता है, वह तिथि चतुर्दशी कहलाती है। अष्टमी के दिन सूर्योदय होता है, वह तिथि अष्टमी कहलाती है। ___ हो सकता है, घड़ी के अनुसार सूर्योदय के समय चतुर्दशी तिथि बहुत कम समय के लिए शेष हो, फिर भी चतुर्दशी कहलाती है क्योंकि हमारा सारा व्यवहार और लौकिक व्यवहार भी उदय तिथि के आधार पर चलता है। अष्टमी, चतुर्दशी के दिन किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान और प्रत्याख्यान उदय तिथि के आधार पर संपन्न किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में केवल संवत्सरी के लिए घड़ी के आधार पर परिवर्तित तिथि को स्वीकार करने का कोई कारण समझ में नहीं आता। ज्ञात हुआ है कि इस वर्ष घड़िया तिथि के आधार पर महावीर जयन्ती भी दो दिन मनाई गई। समझ मे नहीं आ रहा है कि जब हमारे अष्टमी, चतुर्दशी के अनुष्ठान उदय तिथि के आधार पर हो सकते हैं तो संवत्सरी आदि पर्व क्यों नहीं हो सकते? इसी प्रकार पाक्षिक और चातुर्मासिक प्रतिक्रमण उदय तिथि के आधार पर किए जा रहे हैं और संवत्सरी प्रतिक्रमण के लिए घड़िया तिथि का प्रयोग किया जाता है। इस भेद का कारण भी समझ से परे है। प्राचीन काल में वर्ष का प्रारम्भ दीपावली, रामनवमी आदि पर्व दिनों से होता था। सरकार के सामने कठिनाई आई। सभी प्राचीन परंपराओं को बदलकर एक नई परंपरा स्थापित की गई। उस परंपरा के अनुसार आर्थिक वर्ष का प्रारम्भ अप्रैल से होता है और उसका अन्त ३१ मार्च को होता है। अब भी दीपावली, दशहरा को पूजन करने वाले करते हैं, पर खाते-बहियों का प्रारम्भ सरकार द्वारा स्थापित वर्ष के प्रथम दिन एक अप्रैल से होता है। संवत्सरी को लेकर परंपरा-भेद चल रहा है। उसके कारण उलझी हुई समस्या को सुलझाया जा सकता है, यदि व्यवहार को प्रधान मानकर कार्यक्रम का निर्धारण किया जाए। संवत्सरी : एकीकरण के प्रयत्न सब जैन एक ही दिन संवत्सरी पर्व की आराधना करें, इस विषय का चिंतन लगभग तीन-चार दशक से चल रहा है। प्रायः सभी संप्रदायों के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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