Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 232
________________ ३७. जैन शासन की एकता : आचार की कसौटी आचार की कसौटी आचार की विशुद्धि, आचार की अशुद्धि, आचार की कठोरता और आचार की शिथिलता-इन शब्दों से हम बहत परिचित हैं। कौन-सा आचार विशुद्ध है और कौन-सा अशुद्ध ? कौन-सा आचार कठोर है और कौन-सा शिथिल? उसके लिए कसौटी क्या है? एक कसौटी निर्धारित करके ही हम उसकी जांच कर सकते हैं। ___आचार की कसौटी है राग-द्वेष-मुक्तता। जिस क्रिया क्षण में रागात्मक और द्वेषात्मक प्रवृत्ति न हो, उसका नाम है आचार। आचार का उद्देश्य है वीतराग होना। वीतरागता का क्षण जिए बिना कोई व्यक्ति वीतरागता की दिशा में आगे नहीं बढ़ सकता। इस कसौटी के आधार पर हम आचार की विशुद्धि और अशुद्धि की परीक्षा कर सकते हैं। मूल आचार : उत्तर आचार जैन साधना पद्धति में आचार पांच भागों में विभक्त है-ज्ञान आचार, दर्शन आचार, चरित्र-आचार, तप आचार और वीर्य आचार। विशुद्धि, अशुद्धि, कठोरता और शिथिलता की चर्चा मुख्यतया चरित्र-आचार के संदर्भ में ही की जाती है। शेष चार चर्चा के विषय नहीं बनते। चरित्राचार के मौलिक भेद पांच हैं-अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। एक शब्द में इन्हें चरित्र या संयम कहा जाता है। इनकी साधना के लिए अनेक नियमों का निर्माण हुआ है। उन्हें भी आचार कहा जाता है। इस प्रकार आचार के दो रूप बन जाते हैं-मूल आचार (मूल गुण) और उत्तर आचार (उत्तर गुण)। मूल आचार वीतराग प्रवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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