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जैन शासन की एकता : आचार की कसौटी २२३ कसा जाता, केवल नियम के आधार पर कसा जाता है। यदि वस्त्र का संबंध अपरिग्रह महाव्रत से जोड़ा जाए तो अन्य उपकरण परिग्रह के साथ कैसे नहीं जुड़ेंगे? शरीर भी एक परिग्रह है। पेन, पेंसिल, चश्मा, पिच्छी आदि उपकरणों को परिग्रह माने या अपरिग्रह ? इस बिन्दु पर हमें यह स्वीकार करना होगा कि अपरिग्रह महाव्रत दोनों परम्पराओं को मान्य है किन्तु उसकी व्याख्या दोनों की एक नहीं है। संदर्भ सचित्त-अचित्त का मुनि कच्चा (सचित्त) जल न ले, यह सिद्धान्त सभी सम्प्रदायों में मान्य है किन्तु उसकी व्याख्या सबकी एक नहीं है। तेरापंथ के मुनि राख से प्रासुक बना हुआ पानी लेते हैं। कुछ स्थानकवासी सम्प्रदाय उसे कच्चा (सचित्त) जल मानते हैं।
पक्का फल अचित्त होता है, यह सिद्धान्त श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों परम्पराओं को मान्य है। दिगम्बर मुनि पके फल का उपयोग करते हैं। श्वेताम्बर परम्परा में पके फल के रस और गूदे को अचित्त माना जाता है, छिलके और गुठली को सचित्त माना जाता है। इस प्रकार मूल गूदे की व्याख्या में भी एकरूपता नहीं है। इस अनेकरूपता के कारण ही अनेक सम्प्रदाय अस्तित्व में आए हैं। संदर्भ हिंसा और अहिंसा का व्याख्या भेद या दृष्टिकोण का भेद भी आचार की भिन्नता का कारण बना है। अहिंसा महाव्रत मुनि के लिए है। वह सभी परम्पराओं में मान्य है। कोई भी परम्परा उसे अमान्य नहीं करती किन्तु अहिंसा के विभिन्न पहलुओं की व्याख्या में सब एक मत नहीं हैं। मूर्तिपूजक सम्प्रदाय के साधु दिन के प्रथम प्रहर और चौथे प्रहर में सिर ढककर चलते हैं। उनका अभिमत है-सूक्ष्म अप्काय के जीवों की वर्षा होती है। खुले आकाश में जाने से उनकी हिंसा होती है। तेरापंथ सम्प्रदाय के साधु रात को खुले आकाश में न बैठते हैं, न सोते हैं। स्थानकवासी सम्प्रदाय की भी प्रायः यही परम्परा है। दिगम्बर मुनि रात को खुले आकाश में सोने में कोई हिंसा नहीं मानते।
दिगम्बर मुनि खुले मुंह बोलने में हिंसा नहीं मानते। मूर्तिपूजक
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