Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 235
________________ जैन शासन की एकता : आचार की कसौटी २२१ निसैनी पर चढ़कर ऊपर के माले से लाकर भिक्षा दे उसे लेने का निषेध किया गया है। ऊपर चढ़ने वाला चढ़ते या उतरते समय कहीं गिर जाए तो उसके हाथ-पैर भी टूट जाते हैं और जीवों की विराधना भी हो जाती है। ऐसी संभावना ध्यान में रखकर वैसी भिक्षा लेने का निषेध किया गया। संदर्भ वस्त्र प्रक्षालन का श्वेताम्बर परम्परा में अनेक मुनि वस्त्र नहीं धोते और अनेक मुनि वस्त्र धोते हैं। मलिन वस्त्र पहनने के पीछे यही तर्क है-कपडा धोने से विभूषा का भाव आने की संभावना है। इस प्रकार सैकड़ों नियम हैं, जो भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों ने भिन्न-भिन्न रूप में अपने-अपने सम्प्रदाय में लागू किए हैं। जिस सम्प्रदाय के आचार्य को जो उचित लगा, वैसे नियम बनाए और उन्हें स्थायित्व प्रदान किया। छेद सूत्रों में भी ऐसे अनेक नियम हैं, जो उस समय की परिस्थिति से सापेक्ष हैं। आज परिस्थिति के बदल जाने पर वे नियम भी अपने आप में कृतार्थ हो गए। कसौटी है संयम ये कुछ उदाहरण इसलिए मैंने प्रस्तुत किए हैं कि इन नियमों के आधार पर आचार की कठोरता और शिथिलता का निर्धारण किया जाए तो वह उचित नहीं होगा। नियम आचार की कसौटी नहीं बन सकते। आचार की कसौटी बनने की क्षमता संयम या महाव्रतों में है। अधिकांश लोग परम्परा भेद और नियम भेद के आधार पर आचार की कठोरता और शिथिलता का निर्धारण करते हैं तथा उसके आधार पर साम्प्रदायिक असद्भावना की डोरी को आगे खींचते जाते हैं। बावन अनाचार : संयम या नियम मुनि के लिए बावन आचार निर्दिष्ट हैं। उनमें सब एक कोटि के नहीं हैं। कुछ अनाचार संयम से संबद्ध हैं, कुछ नियम से संबद्ध हैं। मुनि औद्देशिक आहार न लें, इस निषेध का संबंध संयम से, अहिंसा महाव्रत से है। मुनि पैरों में पादुका न पहने, इस निषेध का संबंध नियम से है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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