Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 223
________________ ३६. आवश्यक है संवत्सरी की समस्या का समाधान संवत्सरी जैन शासन का सबसे बड़ा पर्व है। यह धर्माराधना का पर्व है। इसलिए इसका महत्त्व सार्वदेशिक और सार्वकालिक है। वर्तमान में यह परम्परा भेद के कारण विवाद का विषय बना हुआ है। सब चाहते हैं कि इस विवाद का कोई समाधान हो। समाधान के लिए हमें अतीत में लौटना होगा। भगवान् महावीर से आधुनिक परम्परा तक का अध्ययन करना होगा। इस अध्ययन के तीन चरण हैं १. आगमकालीन व्यवस्था २. प्राचीन परम्परा ३. आधुनिक परम्परा। आगमकालीन व्यवस्था आगम युग में संवत्सरी जैसा शब्द प्रचलित नहीं था। संवत्सरी का मूल नाम है-पर्युषणा। पर्युषणा के विषय मे आगमों में अनेक निर्देश मिलते हैं निशीथ के अनुसार जो भिक्षु पर्युषणा में पर्युषणा नहीं करता, वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। जो भिक्षु अपर्युषणा में पर्युषणा करता है, वह प्रायश्चित्त का भागी होता है। ___ पर्युषणाकल्प के अनुसार श्रमण भगवान् महावीर ने वर्षा ऋतु के पचास दिन बीत जाने पर वर्षावास की पर्युषणा की थी। गणधरों, स्थविरों और आधुनिक श्रमण निर्ग्रन्थों ने भी उस परंपरा का अनुसरण किया। इसमें केवल पचास दिन का उल्लेख है। समवायांग सूत्र में उत्तरवर्ती दिनों का भी उल्लेख किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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