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२०८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
ने छह खण्ड पर विजय प्राप्त की । चक्र आया लेकिन आयुधशाला में न घुसा । भरत ने सोचा- क्या अब भी कोई जीतना अवशेष है। ध्यान लगाने पर मालूम हुआ - बाहुबलि इसमें बाधक बन रहा है । निमन्त्रण भेजा । फिर भी बाहुबलि नहीं आये । १२ वर्ष तक युद्ध चला। आखिर दोनों भाइयों ने पांच लड़ाइयां लड़ीं। उन सबमें भरत हारा और बाहुबलि जीता। मुष्टि-युद्ध में भरत ने बाहुबलि पर मुष्टि मारी तो बाहुबलि कुछ नीचे चले गए । बाहुबलि ने मुष्टि का प्रहार किया तो भरत गले तक भूमि में धंस गए।
इसका कारण क्या था ? कारण यही था कि बाहुबलि ने पूर्व-भव में साधुओं की सेवा की थी । उसी के प्रभाव से वह इतना शक्तिशाली बना था । सेवाभाव के लिए नंदिषेण जैसी अनेक कथाएं प्रचलित हैं । ओघनियुक्ति में सेवा करनेवाले साधुओं की विशेष संज्ञा 'वृषभ' है । उनकी व्यवस्था भी अलग होती थी । उनका जीवन सेवा में ही व्यस्त रहता था । सेवाधर्मः परमगहनः योगिनां - सेवाधर्म की महिमा प्रायः सभी ने मुक्तकण्ठ से गाई है। हमारा सौभाग्य है कि तेरापन्थ सम्प्रदाय में इसका सजीव - चित्र हमें देखने को मिलता है । आज भी यह परम्परा अक्षुण्ण चली आ रही है । सेवा - भावी सन्त - सती इस मंगलमयी परम्परा का और अधिक विकास करें - यही मैं चाहता हूं ।
* स्थिरवासिनी साध्वियों के शताब्दी समारोह पर प्रदत्त प्रवचन ।
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