Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 218
________________ २०४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ गतिमान् बनाना था और आचार्य तुलसी की जरूरत है आज, जब युग-चेतना के साथ अणुव्रत के माध्यम से तेरापंथ की विचारधारा को जोड़ना है। आज के युग की अपेक्षा है-शारीरिक, मानसिक एवं भावात्मक समस्याओं के समाधान की। गरीबी की समस्या का समाधान धार्मिक मंच से नहीं, अपितु कृषि के विकास से होगा; किन्तु मानसिक समस्या का समाधान भौतिक जगत् के पास नहीं है। किसी वैभव की सत्ता में इतनी ताकत नहीं जो इस समस्या का समाधान दे सके, एक मात्र धार्मिक और आध्यात्मिक मंच ही इस समस्या को समाधान दे सकते हैं। तेरापंथ ने इस समस्या का समाधान प्रस्तुत करने की क्षमता अर्जित की है। अपेक्षा उसी से की जा सकती है जिसके पास शक्ति हो। स्वयं शक्तिहीन दूसरों की समस्या का समाधान नहीं दे सकता। बुझी हुई राख कभी प्रकाश नहीं दे सकती, प्रज्वलित ज्योति ही अन्धकार को प्रकाश में बदल सकती है। तेरापंथ ने स्वयं शक्ति अर्जित की है। अनुशासन, संगठन, व्यवस्था, अहंकार और ममकार का विसर्जन, सत्यनिष्ठा और ब्रह्मचर्य-ये हमारी शक्ति के स्रोत हैं। __ जो संघ अपने संयम और अनुशासन से शक्ति-सम्पन्न हो, उससे मानव जाति अपेक्षा रखती है। आचार्य तुलसी ने उन अपेक्षाओं को पूरा करने का प्रयत्न किया है-अणुव्रत के माध्यम से, प्रेक्षा-ध्यान के माध्यम से, नये विचार और सृजनात्मक दृष्टिकोण के माध्यम से। आज तक तेरापंथ की ओर से किसी भी सम्प्रदाय के विरोध में दो पंक्तियां भी नहीं लिखी गई हैं। सवा दो सौ वर्षों का. इतिहास इस तथ्य का साक्षी है। जिसका इतना सृजनात्मक और रचनात्मक दृष्टिकोण रहा हो. वह देने की क्षमता में आता है। इस महान शक्तिशाली, दायित्व-बोध, युगबोध और युग-चेतना के साथ चलने वाले संघ को प्रणाम ।* * तेरापंथ स्थापना दिवस पर प्रदत्त वक्तव्य। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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