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२०० अतीत का वसंत वर्तमान का गौरव किसी नए पद की व्यवस्था न करे और किसी व्यक्ति की किसी पद पर नियुक्ति न करे। ___ तेरापंथ का ध्रुव सत्य यह है कि कोई साधु-साध्वी पद के लिए उम्मीदवार नहीं बनता। मन ही मन कोई उम्मीदवार बन जाता है, वह पनप नहीं पाता।
तेरापंथ की शासन-प्रणाली आचार्य केन्द्रित है। उसमें विकेन्द्रीकरण का पूरा अवकाश है।
धर्मशासन में आचार्य केवल शास्ता नहीं होता, वह गुरु भी होता है शास्ता की कार्य-प्रणाली का मुख्य आधार होता है अनुशासन। गुरु की कार्यप्रणाली प्रशिक्षण और हृदय-परिवर्तन पर आधृत होती है। वही धर्मसंघ शक्तिशाली हो सकता है, जिसे यह उभय धर्मात्मक नेतृत्व प्राप्त होता है। मामेकं शरणं व्रज-यह समर्पण की भाषा है। समर्पण किसी व्यक्ति के प्रति नहीं होता, वह लक्ष्य, सिद्धांत और आचार के प्रति होता है। धर्मसंघ का लक्ष्य है आध्यात्मिक विकास, सिद्धांत है आत्मा को प्रतिष्ठित करना और आचार है वीतरागाभिमुखी साधना। आचार्य लक्ष्य की पूर्ति, सिद्धांत की पुष्टि और आचार की अनुपालना में सहायक होता है, इसलिए संघ के साधु-साध्वियों का समर्पण आचार्य के प्रति होता है।
तेरापंथ की सफलता का रहस्य श्रद्धा और समर्पण है। आचार्य के आदेश-निर्देश को पूरा धर्मसंघ हृदय से स्वीकार करता है, यह वर्तमान युग का एक बड़ा आश्चर्य है। ___ अनुशासन केन्द्रित और कार्य विकेन्द्रित-इस प्रणाली से प्रवर्धमान प्रवृत्तियों को अधिक व्यवस्थित किया जा सकता है। अग्रणी की व्यवस्था विकेन्द्रित प्रणाली का स्वरूप है। केन्द्रित और विकेन्द्रित प्रणाली का जो मूल्य है, उससे अधिक मूल्य है लक्ष्य की पूर्ति का, साध्य की सिद्धि का। मर्यादा साध्य की सिद्धि में सहायक बनती है इसलिए वह हमारे लिए बहुत मूल्यवान् है। जयाचार्य ने मर्यादा महोत्सव की स्थापना कर तेरापंथ को प्राण शक्ति प्रदान की है। उससे अनुप्राणित धर्मसंघ निरन्तर गतिशील होकर विकास के पथ पर आगे बढ़ रहा है।
* १३खें मर्यादा महोत्व पर प्रस्तुत वक्तव्य।
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