Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 213
________________ संघीय अनुशासन १६६ मर्यादा महोत्सव केवल मर्यादा का महान् उत्सव नहीं है, वह योग्यता का प्रमाण पत्र है। आज की अपेक्षा है-धर्मसंघ के हर सदस्य की योग्यता में वृद्धि हो, हर सदस्य के मानस-पटल पर लज्जा का लिप्यंकन हो। ___आत्मानुशासन के बिना अनुशास्ता का दिया हुआ अनुशासन सफल नहीं होता। लज्जा आत्मानुशासन है, अपने द्वारा अपने पर नियंत्रण है, संयम है। इसके चार रूप बनते हैं १. एकांत में आत्मानुशासन २. परिषद् में आत्मानुशासन ३. नींद में आत्मानुशासन ४. जागृत अवस्था में आत्मानुशासन जो एकांत में आत्मानुशासी होता है, उसके लिए अनुशासन अलंकार होता है। जो केवल परिषद् में अनुशासित होता है, उसके लिए अनुशासन आरोपित जैसा होता है। जो नींद में भी अनुशासित होता है, उसके लिए अनुशासन सहज सिद्ध होता है। जो जागृत अवस्था में अनुशासित होता है, उसके लिए अनुशासन अभ्यास-साध्य होता है। ___आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ को एक मंगल मंत्र दिया, वह है-एक आचार्य का नेतृत्व। उसके प्रभाव से हमारा धर्मसंघ सदा गतिशील है, विकास कर रहा है। आचार्य भिक्षु ने पद और महत्त्वाकांक्षा को सीमित कर संगठन को चिरजीवी बना दिया। तेरापंथ तीसरी शताब्दी में उच्छ्वास ले रहा है। आचार्य भिक्षु कृत मौलिक मर्यादाओं को बदलने की आवश्यकता कभी महसूस नहीं हुई। यह उनके आभामण्डल और अंतर्दृष्टि का परिणाम है। इन पच्चीस दशकों में अनेक परिवर्तन हए हैं और भविष्य में भी होते रहेंगे, किन्तु आधारभूत मर्यादाओं को अपरिवर्तित रखना है। यह हमारा पवित्र कर्त्तव्य है। परिवर्तन में हमारा विश्वास है। केवल परिवर्तन में हमारा विश्वास नहीं है। अनेकांत का सूत्र है-परिवर्तन और अपरिवर्तन का समन्वय। आचार्य भिक्षु ने अनुशासन को केन्द्रित और कार्य को विकेन्द्रित किया। उन्होंने कहा-'आचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तक, गणी, गणावच्छेदक, स्थविर और प्रवर्तिनी-इन सात पदों के कार्य में देख रहा हूं।' इसकी ध्वनि है कि उन्होंने किसी पद की व्यवस्था नहीं की, किसी भी साधु-साध्वी की किसी पद पर नियुक्ति नहीं की। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि भविष्य में कोई भी आचार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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