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१८२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
और अनेक नियम इस जीत व्यवहार के आधार पर चलते हैं ।
श्रीमज्जयाचार्य के सामने एक प्रश्न आया कि बहुश्रुत जो निर्णय करे वह मान्य हो तो कौन कह सकेगा कि मैं बहुश्रुत नहीं हूं ? हर एक कहेगा - मैं बहुश्रुत हूं। इसके समाधान में कहा गया कि बहुश्रुत वही माना जाएगा जिसे आचार्य बहुश्रुत मानें। अपनी इच्छा से कोई बहुश्रुत नहीं माना जा सकता । जिसे आचार्य की मान्यता प्राप्त होगी, उसी बहुश्रुत की बात मान्य हो सकेगी। इस भूमिका के आधार पर जितने भी नये विषय हैं, जिन बातों का शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश नहीं है, न विधान है और न निषेध, इस कोटि के जितने प्रश्न सामने आते हैं, उन सारे विषयों का निर्णय जीत-व्यवहार के आधार पर कर लिया जाता है ।
कुरान शरीफ का एक सुन्दर प्रसंग है। मोहम्मद साहब अपने खलीफों को प्रचार के लिए चारों ओर भेज रहे थे । एक खलीफा से कहा गया, 'तुम धर्म-प्रचार के लिए जाओगे तो कई प्रश्न सामने आएंगे, कई समस्याएं सामने आएंगी। उन सबका समाधान कैसे खोजोगे? उसने कहा - 'मैं उनका समाधान कुरान शरीफ में खोजूंगा ।' मोहम्मद साहब ने कहा - 'बहुत अच्छी बात है । परन्तु यदि वह समाधान कुरान शरीफ में नहीं मिला तो कहां खोजोगे ? उसने कहा- 'फिर अपने विवेक से उनका समाधान खोजूंगा।' मोहम्मद साहब ने कहा - 'अच्छा, तुम जाओ धर्म-प्रचार करने में तुम सफल हो सकोगे । जो बात कुरान शरीफ में नहीं है, उसे अपने विवेक से ही समाहित करनी होगी ।'
हम अपने वर्तमान के चिन्तन को कभी भी नियंत्रित नहीं कर सकते। आप कह सकते हैं कि सौ वर्ष पूर्व हम ऐसा नहीं करते थे, भिक्षु स्वामी के समय में हम ऐसा नहीं करते थे, आज क्यों करते हैं? इसका सीधा-सा उत्तर है । उनके जमाने में कोई जरूरत नहीं हुई, नहीं किया, आज जरूरत है उसे कर लिया । उसका समाधान वर्तमान के ही साधुओं से किया जाएगा। इसके लिए हम क्या करेंगे? हमारे पास जो साधन है, हम देखेंगे कि आगम में इसका क्या विधि-विधान है, हमारी परंपरा में इसका क्या विधान है, सबको देखेंगे, उनमें यदि समाधान नहीं मिलेगा तो हमारा चिन्तन, हमारा विवेक, हमारी बुद्धि और हमारा विमर्श ही काम देगा । उसी के आधार पर निर्णय लिया जाएगा कि वर्तमान
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