Book Title: Atit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 186
________________ १७२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ खाना आपको पड़ेगा। यह प्रश्न भी समाप्त हो जाएगा कि रसोई स्त्रियां ही क्यों करती हैं, पुरुष क्यों नहीं करते? रसोई तब मशीनें बनाएंगी, यंत्र करेंगे। यह केवल कल्पना ही नहीं है। इसके सिद्धान्त निश्चित हो चुके हैं, योजनाएं बन चुकी हैं। इन सारे परिवर्तनों में भी हम देखते हैं कि व्यवहार के स्तर पर, देश-काल-सापेक्ष होने वाले सीमा में यदि कोई भी परिवर्तन आता है, वह न अवांछनीय होता है, न असंभव होता है, न असम्मत होता है और न कोई शास्त्र या परंपरा के विरुद्ध होता है। मात्र इतना-सा विचार आता है कि पहले ऐसा था, आज ऐसा है। मैं समझता हूं कि आचार्य भिक्षु और महाप्रज्ञ श्रीमज्जयाचार्य ने हमारा जो मार्गदर्शन किया है, वह यदि नहीं होता तो शायद कुछ कठिनाइयां होतीं। किन्तु उन्होंने सुन्दर मार्गदर्शन दिया, जिसके सहारे हम सारी कठिनाइयों को पार करने में समर्थ हैं। आचार्य भिक्षु ने कहा- 'मैं जो कर रहा हूं, वह अपने व्यवहार से शुद्ध जानकर कर रहा हूं, हो सकता है, भविष्य में होने वाले साधुओं, बहुश्रुत मुनियों को वह ठीक न लगे। तो वे उसे बदल सकते हैं, छोड़ सकते हैं।' यह बहुत बड़ी बात कही है आचार्य भिक्षु ने। ऐसे सत्य-शोधक विरले ही हुए हैं जो यह बात कह सकें कि मैं जो कर रहा हं वह यदि ठीक न लगे तो उसे छोड़ देना। मेरा कोई आग्रह नहीं है उसे वैसे ही रखने का। ऐसे व्यक्ति तो बहुत हुए हैं जिन्होंने कहा कि मैं जो रेखा खींच रहा हूं, उसे किसी ने बदल दिया तो वह गुनहगार होगा। किन्तु आचार्य भिक्षु जैसे सत्यान्वेषक, सत्य-शोधक नहीं मिलेंगे। उन्होंने कहा-मैं जो कुछ कर रहा हूं, उसे मैं व्यवहार में शुद्ध जानकर कर रहा हूं। किन्तु बहश्रुत मुनियों को यह ठीक नहीं लगे तो वे इसे छोड़ दें, बदल दें। ऐसी बात वही व्यक्ति कह सकता है जो सत्य के लिए सर्वथा समर्पित होता है। ____ श्रीमज्जयाचार्य ने कुछ बातें बदल दी, जो आचार्य भिक्षु के समय में प्रचलित थीं। बीसों बातें बदल दीं। किसी व्यक्ति ने पूछा-'महाराज! मन में एक प्रश्न आता है कि जो काम आचार्य भिक्षु करते थे, उन्हें आपने छोड़ दिया। मैं मानता हूं कि आपने इनको छोड़ा है तो सावद्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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