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१७४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ किया है।
चावल पके हैं या नहीं, इसे देखने के लिए ऊपर से थोड़े चावल लेकर देख लिये जाते हैं। सारे बर्तन में हाथ नहीं डाला जाता। इससे आप समझ सकते हैं कि परंपरा के परिवर्तन के पीछे हमारा क्या दृष्टिकोण है? क्या प्रक्रिया है? मैं समझता हूं कि इसे समझने के बाद सैकड़ों उलझनें स्वतः समाप्त हो जाती हैं।
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