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१३६ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ अधिक विचार किया-एक आचार्य भिक्षु और दूसरे महात्मा गांधी। साधन-शुद्धि का सिद्धान्त हृदय-परिवर्तन का सिद्धान्त है। जयाचार्य ने हृदय-परिवर्तन पर बहुत बल दिया। उन्होंने कहा-हृदय को बदले बिना अनुशासन का विकास नहीं हो सकता। हृदय-परिवर्तन की बात सुनने में बहुत मीठी लगती है। पर क्या यह स्वयं एक उलझन नहीं है? क्या हृदय बदल सकता है? मनुष्य के स्वभाव को बदलना सबसे कठिन बात है। इसीलिए यह मान्यता बन गई है कि स्वभाव को नहीं बदला जा सकता।
हृदय-परिवर्तन अनुशासन को विकसित करने का एक उपाय है। हम निरुपाय नहीं हैं, यह प्रसन्नता की बात है। पर वह कैसे हो सकता है, इसे वैज्ञानिक भाषा में समझना जरूरी है। वैज्ञानिक शब्दावली में हृदय-परिवर्तन का अर्थ है-जैविक रसायनों का परिवर्तन। ये रसायन हमारे व्यवहार और आचरण को नियंत्रित करते हैं । इन्हें बदले बिना अनुशासनहीनता की समस्या को नहीं सुलझाया जा सकता। श्वेत अश्वेतों पर आक्रमण कर रहे हैं। सवर्ण असवर्ण जातियों से घृणा कर रहे हैं। कभी जातीयता समस्या बनकर उभरती है, तो कभी साम्प्रदायिकता। ये सब अनुशासनहीनता की चिनगारियां हैं, जो समय-समय पर उछलती रहती हैं। पूरा समाज इनकी लपेट में ताप और संताप का अनुभव करता है। क्या ये जातीय और साम्प्रदायिक उपद्रव अनुशासनहीनता के कारण हो रहे हैं? गहरे चिन्तन के बाद इन्हें अनुशासनहीनता के कारण नहीं माना जा सकता। ये सब अनुशासनबद्धता के कारण हो रहे हैं। जाति या नस्ल के नाम पर एक अनुशासन चल रहा है। उससे अनुशासित लोग जातीय उपद्रव कर रहे हैं। सम्प्रदायों का भी अपना अनुशासन है। कुछ सम्प्रदाय उपद्रवों को अनावश्यक नहीं मानते। इसीलिए साम्प्रदायिक उपद्रव फैलते हैं। सही अर्थ में आदमी अनुशासनहीन नहीं है। उसका व्यवहार और आचरण किसी न किसी अनुशासन से प्रतिबद्ध है। यह अलग प्रश्न है कि आज जो अनुशासन की मांग है, उसकी भाषा क्या है, उसका अर्थ क्या है, उसके पीछे चिन्तन क्या है?
अनुशासन का एक अर्थ है-दूसरों के आदेश का स्वीकार और
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