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अनुशासन के मंत्रदाता : जयाचार्य १३६ बिना अनुशासन को चिरजीवी नहीं बनाया जा सकता। विषमतापूर्ण व्यवहार मनुष्य को अनुशासनहीन बनाता है। उन्होंने साधु-संस्था में संविभाग और समतापूर्ण व्यवस्था के धर्मचक्र का प्रवर्तन किया। किसी साम्यवादी जीवन-प्रणाली में भी इतनी संविभाग और समतापूर्ण व्यवस्था नहीं है, जितनी तेरापंथ की साधु-संस्था में है। __ एक व्यक्ति ने आचार्य भिक्षु से पूछा-तेरापंथ धर्म संघ कब तक चलेगा? उन्होंने उत्तर में कहा-पदार्थ के प्रति मूर्छा नहीं बढ़ेगी, आचारनिष्ठा और सत्यनिष्ठा बनी रहेगी तथा आचार्य और साधु अनुशासन के प्रति जागरूक रहेंगे, तब तक यह धर्मसंघ चलेगा।
अनुशासन को संघीय जीवन का आधार नहीं कहा जा सकता, किन्तु निश्चित ही वह सुरक्षा कवच है। चरित्रहीन अनुशासन श्मशान के दीप की भांति प्रकाश देता है, साथ-साथ में भय भी पैदा करता है। चरित्र-संपन्न अनुशासन मन्दिर के दीप की भांति प्रकाश और पवित्रता--दोनों का विकिरण करता है।
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