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आचार्य तुलसी की आलोक रेखाएं १४३ विशेष प्राप्ति नहीं है तो मूल में भूल भी नहीं है। किन्तु विद्यार्थी चरित्रार्थी न हो तो वह मूल में भूल है। तेजस्विता का मूलमंत्र युवक की भाषा में कहते हैं- 'आदमी शक्ति का पुंज है, क्या वह कभी बूढ़ा होता है? तुम मत मानो कि मैं बूढ़ा हो गया हूं, फिर देखो तुम कैसे बूढ़े होते हो? निराशा असमय में बूढ़ा बना देती है। आशावान् सदा युवक रहता है।' वे अवस्था और जवानी का गठबन्धन स्वीकार नहीं करते। उनका मत है-जिस व्यक्ति में उत्साह, आशा और प्रसन्नता है, वह सत्तर वर्ष का होकर भी युवा है। जिसमें ये तत्त्व नहीं हैं, वह बत्तीस वर्ष का होकर भी बूढ़ा है।
गुरुदेव के उत्साह ने भावना को संपुष्टि दी है और भावना ने कर्म को। उनका धर्म-समन्वित कर्म उनकी तेजस्विता का मूल मंत्र है।*
* धवल समारोह पर प्रस्तुत निबंध।
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