________________
१५२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ तक मनुष्य जाति का भला नहीं हो सकता। सबसे ज्यादा इस अद्वैत की आवश्यकता है। वेदान्त का अद्वैत मान्य हो या न हो किन्तु मनुष्य जाति और प्राणिजगत एक है, इस बात की आज बहुत आवश्यकता प्रतीत होती है। शिक्षक ने विद्यार्थी से पूछा कि पाजामा एक वचन है या बहुवचन। विद्यार्थी बोला-नीचे से बहुवचन और ऊपर से एकवचन। ____ हम बहुवचन में न जाएं, भले ही पाजामा दो टांगों में बंट गया हो। मनुष्य जाति में मनुष्य बंटे हुए हों किन्तु पाजामा ऊपर से एकवचन है-इस बात को ध्यान में रखते हुए पूरी मनुष्य जाति और प्राणी-जाति की एकता का अनुभव करें, हमारी प्रज्ञा जाग जाएगी। इतनी प्रज्ञा जब जाग जाती है तो फिर बौद्धिकता का विकास ज्यादा हो या कम, कोई खतरे की बात नहीं है यह नहीं जागती है, तो बड़ा खतरा हो जाता है।
____ मैं बहत विनम्रता के साथ आपसे कहना चाहता हूं कि किसी व्यक्ति की प्रशंसा, स्तुति या अभिनन्दन नहीं होना चाहिए। आपने सुना है कि स्तुति कन्या सदा कुमारी रहती है। बस एक निमित्त बने कि हर व्यक्ति अपनी प्रज्ञा की दीपशिखा को प्रज्वलित करे। मैं इस अभिनन्दन के कार्यक्रम को मेरा अभिनन्दन नहीं मानता हूं किन्तु प्रज्ञा के एक स्फुलिंग को भी जगाने का महान कार्यक्रम मानता हूं और इसमें सब लोगों ने, जिसमें हमारे आगन्तुक अतिथियों ने, श्री कन्हैयालाल फूलफगर ने और मित्र परिषद् के पूरे परिवार ने जो कुछ प्रयत्न किया है, उसे मैं इस विनम्रभाव से स्वीकार कर लेता हूं कि यह उनका प्रयत्न किसी व्यक्ति की प्रशंसा का प्रयत्न नहीं किन्तु प्रज्ञा को प्रतिष्ठित करने का छोटा-सा विनम्र प्रयत्न है।
* महाप्रज्ञ : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ग्रंथ के लोकार्पण के अवसर पर प्रदत्त वक्तव्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org