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४० अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ द्वारा संभव है। उत्तरोत्तर विकास नहीं होता, तब शक्ति कुंठित हो जाती है, इसलिए विकास की प्रक्रिया निरन्तर चलनी चाहिए। आचार्य भिक्षु ने तेरापंथ का प्रवर्तन (वि. सं. १८१७, ईसवी सन् १७६०) किया। उन्होंने विकास का बीज-वपन कर दिया। साहित्य के क्षेत्र में उनका अवदान निश्चित रूप से अविस्मरणीय है। ___ अनुस्मृति है कि हेमराजजी स्वामी की दीक्षा (वि. सं. १९५३, ई. सन् १७६६) के पश्चात् संघ का चतुर्मुखी विकास शुरू हुआ। श्रीमज्जयाचार्य विकास के मेरुदण्ड बने। उन्होंने अनुशासन, मर्यादा, व्यवस्था, साहित्य आदि अनेक क्षेत्रों में विकास के कीर्तिमान स्थापित किए। मर्यादा-महोत्सव उनकी दूरदर्शी दृष्टि का परिणाम है।
प्रत्येक आचार्य ने अपने-अपने समय में विकास की कोई न कोई रेखा खींची। तेरापंथ के आधुनिक विकास के मंत्रदाता हैं-पूज्य कालूगणी। उन्होंने संस्कृत और प्राकृत विद्या का बीज-वपन कर तेरापंथ धर्म संघ को मध्यकालीन जैन युग में प्रवेश करवा दिया तथा साथ-साथ आधुनिक युग में प्रवेश का द्वार खोल दिया।
विकास के शलाकापुरुष हैं-आचार्यश्री तुलसी। आचार्यवर ने शिक्षा, साहित्य, शोध, आगम-सम्पादन, अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान, जीवन-विज्ञान, अहिंसा-प्रशिक्षण, विहार-क्षेत्र विस्तार, समण श्रेणी, विदेश-यात्रा आदि विकास के नए-नए आयाम उद्घाटित किए। गुरुदेव की सृजनात्मक प्रतिभा, कल्पना शक्ति और कर्मजा मति ने विकास का मार्ग प्रशस्त किया। हमारी विकास की गति निरन्तर आगे बढ़े, इसलिए विकास-महोत्सव की परिकल्पना की गई है।
आचार्यश्री तुलसी की अभिवंदना में भाद्रव शुक्ला नवमी का दिन विकास महोत्सव के रूप में मनाने का निश्चय किया गया है। ___ भाद्रव शुक्ला नवमी के दिन आचार्य तुलसी आचार्य-पद पर अभिषिक्त हुए। प्रतिवर्ष यह दिन ‘पट्टोत्सव' के रूप में मनाया जाता है। वि. सं. २०५० माघ शक्ला सप्तमी, मर्यादा-महोत्सव के दिन सुजानगढ़ में पूज्य गुरुदेव ने आचार्य-पद का दायित्व युवाचार्य महाप्रज्ञ में प्रतिष्ठित कर दिया। अतः अब ‘पट्टोत्सव' विकास-महोत्सव के रूप में मनाया जाएगा।
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