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धर्म संघ शक्तिशाली बने ६३ उलझन बन जाती हैं। साम्यवादी देश का नागरिक पोप पाल के प्रतिष्ठित पद पर निर्वाचित हुए। उन्होंने जिन नीतियों की घोषणा की, उनका स्वागत हुआ। एक तंत्रीय संघ-प्रणाली से आप भी निर्वाचित हुए हैं। आप दोनों को अलग-अलग धर्म-परम्परा का नेतृत्व मिला। आपकी और उनकी किन-किन प्रणालियों में समानता की कल्पना की जा सकती है? ईसाई धर्म का क्षेत्र बहुत व्यापक है, बहुत बड़ा है और पोप पाल ने जो घोषणा की है वह वर्तमान युग के संदर्भ में बहुत महत्त्वपूर्ण है। कुछ परम्पराओं से हटकर और नयी चेतना, नये दृष्टिकोण को अपनाने की बात जो सामने आई है वह बहुत महत्त्वपूर्ण है। मैं मानता हूं कि सौभाग्य से मुझे वह कार्य पहले से ही उपलब्ध हो गया। मेरे आचार्य ने पहले से ही कुछ ऐसे उदार, व्यापक और विशाल दृष्टिकोण अपनाये हैं, जिनसे मैं स्वयं बहुत लाभान्वित हुआ हूं और हमारा संघ लाभान्वित हुआ है। आज ईसाई भी अध्यात्म-चेतना के प्रति आकृष्ट होते जो रहे हैं और उनके धर्म गुरु स्वयं पोप पाल ध्यान, साधना जैसे आध्यात्मिक प्रणालियों के प्रति अपनी रुचि प्रदर्शित करते हैं। सौभाग्य से हमारे संघ में भी आज सबसे ज्यादा किसी बात को महत्त्व दिया जा रहा है, तो अध्यात्म-चेतना के जागरण को दिया जा रहा है। उसके बिना मानवीय चेतना, सामाजिक चेतना या नैतिक चेतना कभी विकसित नहीं हो सकती। __ यह एक साम्य का बिन्दु है। हम इसको लेकर चल रहे हैं। ईसाई जगत् का मानस भी उस बिंदु की ओर आ रहा है। संभव हो सकता है कि कभी उस अध्यात्म-चेतना जागरण के बिन्दु पर हम दोनों एक हो जाएं। इसमें कोई कठिनाई नहीं है, बहुत बड़ी संभावनाएं हैं और इन संभावनाओं पर विचार होना भी जरूरी है। मैं सोचता हूं गुरुदेव विचार करेंगे, मुझे भी कुछ मार्ग-दर्शन देंगे। मैं भी उस दिशा में कुछ प्रयत्न करूं; आज सारे संसार को यदि किसी एक बिन्दु पर लाया जा सकता है तो वह धर्म का बिन्दु ही हो
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