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६६ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ तक नहीं ले जा सकती। जीवन-व्रत आचार्यश्री तुलसी के अत्यन्त निकट साहचर्य में मैं रहा। राजनीतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, साहित्यकार, पत्रकार आदि सभी प्रकार के लोगों से विचार-विनिमय करने का अवसर मिला। धर्म में अति श्रद्धा रखने वाले और धर्म को अस्वीकार करने वाले, दोनों प्रकार के लोगों से संपर्क होता रहा, पर मैंने उनमें से बहुत लोगों को तनाव की मनःस्थिति में पाया। मुझे लगा, तनाव वर्तमान की सबसे बड़ी समस्या है। जो गलत निर्णय होते हैं, वे सब तनाव की मनःस्थिति में होते हैं, इसलिए वर्तमान में मानव जाति को तनाव-मुक्ति का मार्ग बतलाना उसकी सबसे बड़ी सेवा है। मैंने इसे अपना जीवन-व्रत बनाया। मुनि अपनी समस्याओं को सुलझाने के लिए जीवन की यात्रा शुरू करता है, किन्तु अपनी समस्याएं केवल अपनी ही नहीं होतीं, वे दूसरों की भी होती हैं। दूसरों की समस्याएं केवल दूसरों की ही नहीं होतीं, वे अपनी भी होती हैं। अपने और दूसरों के बीच में कोई ऐसा लोहावरण नहीं है जिससे एक की समस्या दूसरे में संक्रान्त न हो। इसलिए समस्या के समाधान का मार्ग सबके लिए सुलभ होता है, इसे मैं श्रेय मानता हूं। मेरी दृष्टि में यह जीवन का सबसे बड़ा सृजनात्मक प्रश्न है। शायद रोटी की उपलब्धि से भी इसका अधिक मूल्य है।*
* युवाचार्य बनने के बाद महाप्रज्ञ द्वारा अतीत का विहंगावलोकन।
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