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१८ स्वस्थ कौन?
वीतराग सपर्यातः, तवाज्ञा पालनं परं।
आज्ञा राद्धा विराद्धा च, शिवाय च भवाय च। वीतराग! आपकी उपासना की अपेक्षा आज्ञा की आराधना श्रेयस्कर है। आज्ञा पालन के बिना केवल अर्चना का कोई मूल्य नहीं है। आज्ञा का उल्लंघन भव का हेतु होता है और पालन श्रेय का हेत्।। ___ मैं भी अपने आराध्य की आज्ञा की आराधना के लिए यहां आया हूं। मैं आज्ञा में विश्वास करने वाला हूं। प्राचीन भारतीय संस्कृति की परम्परा में तो यहां तक लिखा है
एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुं नैव मन्यते ।
शूनां योनौ शतं गत्वा चाण्डालेस्वपि जायते॥ यथार्थवाद की दृष्टि से देखें तो यह अर्थवाद हो सकता है पर सोचें इसके पीछे चिन्तन क्या है? ___ आज कृतज्ञता और विनय के संस्कार क्षीण हो रहे हैं इसीलिए गुरु शिष्य भाव टूट-सा रहा है। गुरु के प्रति शिष्य में आस्था का भाव नहीं है और गुरु में शिष्य के प्रति वात्सल्य नहीं है।
तर्क ही प्रधान हो, आज्ञा के लिए कोई स्थान बचा न रहे, यह जीवन की विकलांगता है। उसकी पूर्णता है, दोनों का समन्वय।
मैं स्वास्थ्य लाभ के लिए आया हूं, पर मैं देखता हूं स्वास्थ्य की आवश्यकता मुझे ही नहीं, सबको है। मैं नहीं मानता कि जो दुबले-पतले हैं, वे अस्वस्थ हैं और जो मांसल हैं वे सब स्वस्थ। कई अस्वस्थ होकर भी समझ नहीं पाते कि हम अस्वस्थ हैं। इसीलिए उनको स्वस्थ होने का अवसर नहीं मिलता। स्वास्थ्य के बिना जीवन सूना है।
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