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बाहुबलि : स्वतंत्र चेतना का हस्ताक्षर १२३ दिया। विजय की वेला में किया जाने वाला प्रस्थान तपस्या की यात्रा का आदर्श बन गया। स्वतन्त्रता के प्रेम की गाथा अमर हो गई।
त्याग वही कर सकता है, जिसकी चेतना स्वतंत्र होती है। विजय के क्षण में क्षमा वही कर सकता है, जिसकी चेतना स्वतंत्र है। जीते साम्राज्य को वही त्याग सकता है, जिसकी चेतना स्वतंत्र है। बाहुबलि की विशाल प्रतिमा में उस विशाल स्वतंत्र चेतना का दर्शन उल्लिखित है। हजारों-हजारों लोग उस दर्शन का आकलन करने के लिए उत्सुक हैं।
* श्रवमण बेलगोला में बाहुबलि के महामस्तकाभिषेक अवसर पर आलेखित निबंध
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