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भगवान् महावीर की प्रथम ज्योति : भगवान् बाहुबलि १२५ सत्ता-लोलुपता के विरुद्ध लड़ने की उन्होंने एक परम्परा डाली थी, उसका अनुगमन आज भी हो रहा है। किन्तु वर्तमान धारा ने एक नया मोड़ ले लिया। स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ने वाले विजेता होकर फिर साम्राज्यवादी मनोवृत्ति अपना लेते हैं। सुख-सुविधा, आरामतलबी, ऐश्वर्य, भोग और ठाट-बाट में साम्राज्यवादी भी उनसे पीछे रह जाते हैं। विचित्र था बाहुबलि का त्याग। अद्भुत था उनका संयम। वे विजेता बने। पर सुख-सविधा उन्हें प्रभावित नहीं कर सकी। सच्चा स्वतंत्र वही होता है, जो सत्ता से अभिभूत नहीं होता। भोग और ऐश्वर्य से पद-दलित नहीं होता। बाहुबलि ने स्वतंत्रता को जो प्रतिष्ठा प्रदान की, वह आज भी आदर्श है। उसमें दूसरे व्यक्ति की अधीनता स्वीकार न करने का जितना मूल्य है उतना ही मूल्य है अपनी दुर्बल वृत्तियों की अधीनता के अस्वीकार का। ___भगवान् बाहुबलि की स्मृति की बहुत सार्थकता होगी यदि आज का संसार स्वतंत्रता के प्रथम मूल्य की भांति द्वितीय मूल्य का भी अंकन कर सके।
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