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तेरापंथ के कुछ प्रतिबिम्ब १२७ व्यक्तित्व में।
तेरापंथ, उसकी व्यवस्था, अनुशासन और मन्तव्य जो प्रकाश में आया, उसका निमित्त है गुरुदेव का व्यक्तित्व। इसलिए उससे समाधान पाने का जो भाव है, वह असहज नहीं है। ___ आचार्य भिक्षु के कर्तृत्व को प्रकाश में लाने का श्रेय आचार्यश्री तुलसी को है, तो आचार्यश्री तुलसी के संगठन को शक्तिशाली बनाने का श्रेय आचार्य भिक्षु को है। ___दण्ड-शक्ति और अर्थ की धुरी पर परिक्रमा करने वाले संगठन जितना मस्तिष्क का स्पर्श करते हैं, उतना हृदय का नहीं। अहिंसा और अपरिग्रह का सम्बन्ध सीधा हृदय से है। आचार्य भिक्षु ने आत्मानुशासन को परिपक्व बनाने का प्रयत्न इसीलिए किया कि व्यवस्था स्वचालित बन जाए। जो व्यवस्था चलाई जाती है, वह लंगड़ाती-सी चलती है। सुन्दर गति से वही चलती है, जो स्वयं चले।
धन से धर्म नहीं होता-आचार्य भिक्षु ने यह सिद्धान्त उपस्थित किया। तब बहुतों को अटपटा-सा लगा। इसकी गहराई को नापने में आज भी कठिनाई होती है। परिग्रह की सत्ता धर्म पर, चैतन्य पर छा जाती है। यह पहले भी रहा है, आज भी है। इससे मुक्ति दिलाना वे चाहते थे। इसीलिए उन्होंने कहा-“धन से धर्म नहीं होता।"
जहां यह माना जाता है-धन से धर्म होता है, वहां त्याग नीचे रहता है और धन सिंहासन पर। जहां यह माना जाता है-धन से धर्म नहीं होता वहां धन नीचे लुटता है; त्याग सिंहासन पर रहता है। गुरुदेव अकिंचन हैं। बड़े-बड़े धनपति उनकी कृपा के लिए तरसते हैं तब आकिंचन्य मुस्कराता है और धन को तरस आता होगा अपने आप पर।
जिसके केन्द्र में परिग्रह है, उससे परिग्रह दूर जाता है परिग्रह उसके पीछे झूमता है, जिसके केन्द्र में परिग्रह नहीं होता। तेरापंथ और उसकी व्यवस्था इसलिए आश्चर्यजनक है कि उसके केन्द्र में परिग्रह नहीं है।
तेरापंथ के साधु-साध्वियों की संख्या ६५० से अधिक है। एक आचार्य के नेतृत्व में इतना बड़ा साधु समुदाय कहीं विरल ही प्राप्त होगा। इनके आहार-विहार, रहन-सहन, शिक्षा-दीक्षा-सब गुरुदेव के निर्देशानुसार होते हैं। बाहर से लगता है जीवन नियन्त्रित है और जो
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