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स्वस्थ कौन है? ११३ दे? जिसे साम्य की तीव्र अनुभूति हो, क्या वह दूसरों को कष्ट दे सकता है? इसी तत्त्व के आधार पर यहां धर्म सदा प्रवहमान रहा, अन्यथा वह सूख जाता। अध्यात्म के बिना केवल बुद्धिवाद से न जाने कब क्या हो जाए। भारतीय शिक्षित इस ओर मुड़कर देखें। - इस बुद्धिवाद के युग में मनुष्यता असुरक्षित है। आज उसे अपने त्राण के लिए एक कवच की आवश्यकता है। अणुव्रत मनुष्यत्व के लिए कवच है। यदि मनुष्य मनुष्य बने रहना चाहता है तो वह अणुव्रत स्वीकार करे। यह मानवता की न्यूनतम परिभाषा है। यह आश्चर्य की बात है कि भौतिक साधनों पर लोग दृष्टि गड़ाए हुए हैं और अध्यात्म के साथ आंख मिचौनी ही खेल रहे हैं। अस्वास्थ्य का इससे बड़ा हेतु क्या हो सकता है?*
* राजसमंद में स्वास्थ्य के लिए आयुर्वेदीय पंचकर्म का प्रयोग प्रारंभ करने से पूर्व
प्रदत्त वक्तव्य।
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