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१३. अतीत का अनावरण
योगी की भविष्यवाणी कहानी बचपन से शुरू होती है। कोई बच्चा आगे क्या होगा, यह सब नियति के गर्भ में होता है। उसका स्पष्ट बोध स्वयं को भी नहीं होता
और दूसरों को भी नहीं होता। उसका पूर्वाभास स्वयं को भी हो जाता है और दूसरों को भी हो जाता है। मैं लगभग आठ वर्ष का था। एक अज्ञात भिक्षु आया। वह घर-घर भिक्षा मांगता हुआ घूम रहा था। वह मेरे पड़ोसी के घर पहुंचा। मेरे एक साथी को देखकर वह बोला- 'यह बच्चा एक सप्ताह के बाद चल बसेगा।' वह भिक्षु मेरे घर पहुंचा। उसने मुझे देखकर कहा--'यह बालक योगी होगा, योगिराज होगा। मैं नहीं जानता था, योगी क्या होता है? इन दोनों घटनाओं का लोगों को पता चला । बात सारे गांव में फैल गई। पर एक अनजाने भिक्षु की बात थी, इसलिए किसी ने उस पर विशेष ध्यान नहीं दिया। सप्ताह बीता और मेरा साथी अचानक इस संसार से चल बसा। तब लोगों का ध्यान उस भिक्षु की भविष्यवाणी की ओर गया। उसे खोजा, पर वह कहीं दूसरी जगह जा चुका था। उसका कोई पता नहीं चला। चेतना का प्रस्फुटन मेरी बहन का विवाह था। घर में काफी लोग आए हुए थे। मेरे मन में एक तरंग उठी और मैं आंखों पर रुमाल बांधकर चलने लगा। जब दरवाजे के पास पहुंचा तो सिर भीत से टकरा गया। ललाट के मध्य में चोट लगी, ठीक उसी स्थान पर, जो. ज्योति-केन्द्र (पिनियल ग्लैन्ड) का स्थान है। कभी-कभी बाहर का आघात भी भीतर की चेतना को जगाने का निमित्त बन जाता है। चेतना बाहर में नहीं जागी हो, पर भीतर में उसका प्रस्फुटन शुरू हो गया।
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