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६० अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
का कोई निर्णय होगा, वह सब दुष्टियों से संतुलित, उचित होगा। इसमें मुझे कभी संदेह नहीं था, किन्तु मैं अपने लिए सोचूं, इसके लिए मुझे कोई जरूरत भी नहीं थी। उस क्षण इतना भावनापूर्ण वातावरण था कि चिंतन भावना से दब गया। कोई भी व्यक्ति चिंतन की स्थिति में नहीं था। गुरुदेव ने इस प्रकार एक भावनात्मक ढंग से सारे वातावरण को भावना से प्रभावित कर दिया कि सब लोग भावित हो गए थे। जब भावित हो जाते हैं, तब वहां चिंतन के क्षण नहीं होते हैं। वहां प्रतिक्षण उत्सुकता होती है कि अगले क्षण क्या होता है। निर्वाचन की घोषणा के साथ ही आपके अंतर्मानस में क्या
प्रतिक्रिया हुई? - जब गुरुदेव ने मुझे इस पद के लिए उपस्थित किया, वह क्षण मेरे लिए बहुत विचित्र था और एक साथ इतनी बातें मस्तिष्क में घूम गईं कि उसका विश्लेषण करना भी मेरे लिए कठिन है। जिस दिन दीक्षित हुआ उस दिन से लेकर आज तक का समूचा जीवन-चित्र स्मृति-पटल पर दृश्य की तरह आ गया। हमारा संबंध तादात्म्य और गुरुदेव से मिली सारी प्रेरणाएं, उसके परिणाम और भविष्य की कल्पना वृत्त के रूप में एक साथ घूम गयीं। उस एक क्षण का विश्लेषण करूं तो. उसके लिए हजारों क्षण मुझे चाहिए, किन्तु अज्ञात रूप में सारी बातें जैसे एक साथ चित्र-पटल पर उतर आयीं। मुझे यही लगा कि अगर पहले गुरुदेव मुझे अवकाश देते तो मैं अपने मन की बातें भी और कठिनाइया भी सामने प्रस्तुत करता। गुरुदेव ने बिना अवकाश दिए सीधा निर्देश और आदेश ही दे दिया। मेरे जीवन का व्रत है कि जो आदेश गुरुदेव से मिल जाए, उसे शिरोधार्य करना। उसे स्वीकृत करने के सिवाय मेरे सामने कोई उपाय भी नहीं था। विशाल संघ का महान् उत्तरदायित्व आपश्री द्वारा किये गये एकान्त
साधना के संकल्प में बाधक नहीं बनेगा? . हमारा धर्म-संघ स्वयं साधना का स्थल है। यह संघ किसी दूसरी
प्रवृत्ति का होता, तो निश्चित ही यह बाधा मेरे सामने आती, किन्तु
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