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४२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ कार्य में संभागी रहे।
विकास के तीन आयाम हैं• आगे बढ़ना, रुकना, • पीछे मुड़कर देखना, • समीक्षा करना।
विधि और निषेध-दोनों विकास के अंग हैं। प्रवर्तन और निवर्तन दोनों का समन्वय करके ही विकास की प्रक्रिया को स्वस्थ रखा जा सकता है। कोरी विधि उच्छृखलता का रूप ले सकती है, कोरा निषेध रूढ़िवाद का रूप ले सकता है। इसलिए विधि और निषेध दोनों का समन्वित प्रयोग करना चाहिए। कोई भी समाज या संगठन विकास को आगे बढ़ाए बिना उपयोगी नहीं बन सकता इसलिए विकास महोत्सव की स्थापना आवश्यक है। इससे धर्मसंघ तेजस्वी बना रहेगा। ___ अब तक चतुर्मास, शेषकाल में साधु-साध्वियों के विहार और अवस्थान की प्रार्थना मर्यादा महोत्सव के अवसर पर की जाती रही है। वह समय निर्णय और घोषणा का है। व्यवस्था समीचीन रूप से की जा सके, इसलिए अपेक्षित हो गया है कि श्रावक समाज अपनी प्रार्थना विकास महोत्सव के अवसर पर प्रस्तुत करे, जिससे भविष्य का निर्णय करने में सुविधा हो। केन्द्र के चतुर्मास और मर्यादा-महोत्सव की प्रार्थना भी विकास-महोत्सव से प्रारंभ की जा सकती है। गत वर्ष के विकास का लेखा-जोखा और आगामी वर्ष की योजना तथा विकास कार्य में साधु-साध्वियों, श्रावक-श्राविकाओं की नियुक्ति की परिकल्पना भी इसी समय की जाए, यह अपेक्षित है।
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