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६. नया दायित्व : सबसे बड़ी कसौटी
पूज्य गुरुदेव ! आप बहुत शक्तिशाली हैं। आपमें असीम शक्ति है 1 आपको राहत लेने की भी जरूरत नहीं और आपको कोई राहत दे सके, यह भी एक चिन्तनीय प्रश्न है । किन्तु आज आप स्वयं भारी हैं, गुरु हैं पर स्वयं राहत लेना भी नहीं चाहते और दूसरे को भारी बना देना चाहते हैं । यह दोनों बातें बहुत ही अजीब-सी हैं । मेरा सारा जीवन मेरे सामने चित्रपट की भांति अंकित है । मैं जिस दिन दीक्षित होकर आया, पूज्य आचार्य कालूगणीजी ने कहा- तुम मुनि तुलसी के पास जाओ । वहीं, तुम्हारी शिक्षा-दीक्षा होगी। मैं चला गया। उनके पास रहा। कैसे रहा, यह आप लोगों को बताऊं तो शायद नहीं भी मानें । जानने वाले मानते हैं, जानने वाले भी बैठे हैं, जिन्होंने हमारे बचपन को देखा है । साक्षी हैं, जो जानते हैं। मैं आपको नहीं कह सकता कि आचार्य तुलसी के प्रति समर्पित हुआ, लोग कहते हैं ऐसा । किन्तु मैं इस बात को नहीं मानता। जहां अद्वैत हो, वहां समर्पण की बात ही कैसे हो सकती है ? मैंने देखा, अनुभव किया, कोई ऐसा अज्ञात संस्कार था, जिसे मैं स्वयं नहीं समझता ।
मैं मानता हूं कि मेरे जैसे निश्चिन्त व्यक्ति बहुत कम होंगे। मैंने अपनी कोई चिन्ता नहीं की। कभी नहीं की और करने की मुझे जरूरत नहीं । जब मेरे इतने बड़े चिन्ताकार का आशीर्वाद मेरे माथे पर है, तो मुझे चिन्ता करने की कोई जरूरत नहीं होगी। आप देखें, आज का साधु-साध्वी कोई कल्पना भी नहीं कर सकता होगा कि पछेवड़ी ओढ़नी है; कब ओढ़नी है और कब सिलवानी है साध्वियों से । मुझे कोई पता नहीं होता । बस, यंत्रवत् होता है तो काम हो जाता है और नहीं होता है तो चलता रहता है । मुझे कभी चिन्ता नहीं होती। इतनी निश्चिन्तता
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