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७. विकास महोत्सव
अनुशासन और विकास-दोनों में साहचर्य का सम्बन्ध है। अनुशासन में विकास के बीज छिपे रहते हैं और विकास अनुशासन से प्राणवायु लेकर जीवित रहता है। तेरापंथ धर्मसंघ ने इस साहचर्य का सतत समादर किया है, अनुशासन और विकास का निरंतर मूल्यांकन किया है। ___आचार्य भिक्षु ने एक आध्यात्मिक प्रासाद का निर्माण किया। उसकी पहली भूमिका है आचार और विचार की पवित्रता। दूसरी भूमिका है अहं और मम का विसर्जन। तीसरी भूमिका है अनुशासन और चौथी भूमिका है विकास। तेरापंथ के तीसरे आचार्य का युग विकास की भूमिका का युग माना जाता है। आचार्य भिक्षु और आचार्य भारीमालजी का शासनकाल पूर्ववर्ती तीन भूमिकाओं को सुदृढ़ बनाने का काल है। तृतीय आचार्य का शासनकाल चतुर्थ भूमिका के निर्माण का काल हैसाधु सनंतर आसरे हो जी
दिख्या लीधी गणमांहि । साध्वियां एक सौ सतसठ आसरे,
ऋषराय बरतारा मांहि महाराज। साधु सतसठ आसरै,
हो जी समणी एक सौ तयाली उनमान। सर्व दोय सौ दस रे आसरे,
पे' ली परभव पोहतां जान महाराज। जयाचार्य के शासनकाल में विकास की गति तेज होती है। उन्होंने अनुशासन को प्राणवान् बनाए रखने के लिए वि. सं. १६२० में मर्यादा महोत्सव की स्थापना की। वह संघपुरुष के हृदय की धड़कन
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