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३२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ चरित्र विकास के लिए कार्य करूंगा।” इस घोषणा ने हमारे मानस को आन्दोलित किया। अहिंसा और चरित्र विकास के लिए काम किया जाए, यह बहुत प्रसन्नता की बात है, किन्तु जिस तेरापंथ धर्मसंघ को छह दशक तक ज्योतिर्मय बनाया और बनाए रखा, वह कभी नहीं चाहता-ज्योति की एक भी रश्मि कम हो। मैंने और मेरे साथ पूरे धर्मसंघ ने अभ्यर्थना के स्वर में कहा-“गुरुदेव! हमारे धर्मसंघ को आपका संरक्षण, छत्रछाया और पथदर्शन बराबर मिलता रहे। इस हार्दिक अनुरोध को स्वीकार कर आप ‘गणाधिपति' बने रहने की स्वीकृति दें।"
पूर्व न्यायाधीश श्री सोहनराज कोठारी ने ठीक लिखा है-“गुरुदेव ने सत्ता अपने उत्तराधिकारी में प्रतिष्ठित कर संरक्षण स्वीकार किया तब लगा-राष्ट्रपति राष्ट्रपिता बन गया, शासनाध्यक्ष संरक्षक बन गया।" __ जैनेन्द्र, आचार्य कृपलानी, हरिभाऊ उपाध्याय आदि दिवंगत आत्माएं भी अपनी चिरपालित आकांक्षा पूर्ति पर प्रसन्न होंगी। जैनेन्द्रजी की आकांक्षा थी-'आचार्यश्री! आप तीर्थंकर बनें। तीर्थंकर बने बिना मानवता के हितों की संपूर्ति नहीं की जा सकती।' आचार्य कृपलानी, हरिभाऊ उपाध्याय आदि की आकांक्षा थी-'वर्तमान युग को अध्यात्म की सबसे अधिक जरूरत है। हमारी दृष्टि में आप अध्यात्म का नेतृत्व करने में सक्षम हैं इसलिए आप अपने संघ का दायित्व किसी शिष्य को सौंपकर विश्व हित के लिए अध्यात्म का नेतृत्व स्वीकार करें।' - पूज्य गुरुदेव ने अध्यात्म जगत् का नेतृत्व अपने हाथ में लेकर युगधारा को बदलने की दिशा में नई ऊर्जा का स्रोत उपलब्ध किया है। आपकी वाणी में वह ओज होगा, जिसे सुनने की उत्सुकता जन-जन के मन में होगी।
इस घटना का भविष्य उज्ज्वल होगा, उसके लिए आज भविष्यवाणी करना शीघ्रगामी प्रयत्न होगा। यह बड़े क्षेत्रों में काम करने वाले सभी लोगों के लिए एक प्रभावी बोध पाठ होगा, यह असंदिग्ध भाव से कहा जा सकता है।
* पूज्य गुरुदेव के पद विसर्जन के संदर्भ में लिखित निबंध।
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