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पदाभिषेक : शुभ भविष्य का मंगलपाठ २७ पर। पहले नम्बर की शक्ति दक्षता है। दक्षता का विकास इस श्रेणी से जुड़ा हुआ है, ऐसा विश्वास के साथ कहा जा सकता है। आचार्य बनने के बाद आपने संघ को दो उपहार दिए-विकास महोत्सव और विकास परिषद्। इनके प्रारूप-प्रकल्पना की पृष्ठभूमि
क्या है?आप इनके द्वारा संघ को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं? - पूज्य गुरुदेव ने संघ का जो विकास किया है, उसे नियोजित ढंग से
चलाना स्थायित्व के लिए अपेक्षित है। तेरापंथ की जो गरिमा बढ़ी है, उसके मुख्य हेतु हैं-मर्यादा और विकास। मर्यादा की उपयोगिता समझाने के लिए हमारे पास एक सशक्त माध्यम है मर्यादा-महोत्सव। विकास-महोत्सव विकास के महत्त्व को समझाने के लिए उतना ही सशक्त माध्यम बनेगा, यह हमारी धारणा है। कोई भी संघ अनुशासन और विकास के माध्यम से ही तेजस्वी बन सकता है। विकास-महोत्सव पूज्य गुरुदेव के पट्टोत्सव या आचार्य पदारोहण के दिन सदा गति और प्रगति की सूचना देता रहेगा। ___ यह नियोजन का युग है। अनियोजित विकास बहुत उपयोगी नहीं बनता। उसके सम्यक् नियोजन के लिए विकास परिषद् की कल्पना की गई। फलस्वरूप तेरापंथ का पूरा कार्यक्रम अनुशासित पद्धति से एकसूत्रता के साथ चलता रहे। इस वर्ष अणुव्रत की दृष्टि से दिल्ली में बहुत कार्य हुए हैं। जीवन-विज्ञान की योजना ने भी बल पकड़ा है। केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और दिल्ली राज्य की स्कूलों के अध्यापकों के अनेक शिविर लग चुके हैं। प्रेक्षा के प्रति भी आकर्षण बढ़ा है। इसी वर्ष आचार्य विद्यानन्दजी ने कहा था- 'प्रेक्षाध्यान को झोंपड़ी से लेकर राष्ट्रपति भवन तक पहुंचाना चाहिए।' ये उपक्रम कैसे राष्ट्रव्यापी बन सकते हैं? अन्तर्राष्ट्रीय क्षितिज को छू सकते हैं? केवल एक ही अपेक्षा है, वह है प्रशिक्षण और प्रशिक्षण। जिनका जीवन पहले बोले और शब्दोच्चारण बाद में, ऐसे प्रशिक्षक बढ़ें, पुरुषार्थ इस दिशा में करना है। अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान को व्यापक बनाने का यही सबसे बड़ा संचार माध्यम बन सकता है। तंत्र भी शक्तिशाली बने, इस अपेक्षा को गौण नहीं
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