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पदाभिषेक : शुभ भविष्य का मंगलपाठ २५ उसमें औदयिक भाव-जनित अल्पताएं, कमियां और खामियां भी होती हैं। पूर्ण होने का दावा न कभी मैंने किया और न आज भी करता हूं, किन्तु भावविशुद्धि में अत्यधिक विश्वास रहा और मैं मानता हूं कि उस विश्वास ने ही गुरुदेव के मन में विश्वास उत्पन्न किया। अध्ययन, ज्ञानार्जन, चिन्तन, लेखन-ये सब विश्वास उत्पन्न करते हैं किन्तु मेरी दृष्टि में भावविशुद्धि इन सबसे अधिक उर्वर विश्वास-भूमि है। आपके जीवन का अधिकांश समय बौद्धिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक भूमिका में बीता है। इससे संघ व्यवस्था के साथ कुछ बाधा महसूस नहीं होती? बौद्धिकता, दार्शनिकता और आध्यात्मिकता से शून्य होकर कोई संघीय व्यवस्था करता है तो वह संघ का हित कम, अहित अधिक करता है। हमारी परम्परा में प्रत्येक आचार्य श्रुतसंपन्न, बुद्धिसंपन्न
और अध्यात्म-सम्पन्न हुए हैं इसीलिए संघ की व्यवस्था सुन्दर और प्रभावी रही है। मैं श्रुतोपासना और आत्मोपासना करते हुए भी धर्म संघ की व्यवस्था से लम्बे समय से जुड़ा रहा हूं। अतः यह मेरे लिए न कोई नया कार्य है और न कोई बाधा का प्रश्न है। हां, समय का प्रश्न हो सकता है। नया कार्य इतना ही है कि संघीय व्यवस्था को श्रुतोपासना और आत्मोपासना की तुला के दूसरे पलड़े में समान स्थान देना अनिवार्य है। गुरुदेव ने अपने शासनकाल में अनेक विशिष्ट योजनाओं को नया रूप दिया। आप अपने कार्यकाल में क्या गुरु द्वारा संचालित योजनाओं को ही गतिशील बनाए रखना चाहेंगे या आप अपनी भूमिका पर नए प्रयोग, नए आयाम खोलना चाहेंगे। भविष्य का
नया प्रारूप क्या है? - गुरुदेव का व्यक्तित्व बहुत शक्तिशाली है, फलतः बहुआयामी रहा।
उन्होंने अनेक नए-नए कार्य किए। अनेक दिशाओं में विकास किया। उन सब कार्यों को आगे बढ़ाना हमारा कर्त्तव्य है और धर्म है। विकास को हम नया माने या प्राचीन का उन्नयन मानें। दोनों शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है। मुझे अपने गुरु से जो विकास
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