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आठ रेखायें
अ
एक रेखा
शाब नौरेखायें
S
= छ रेखायें
२४ रेवायें
अंतिम छतीसवे अध्याय में धर्म का तत्त्व पूछा गया है । भगवान् ने छंद शास्त्र के गणो के अनुसार धर्म का महत्व समझाया है। आठों गणों में भगवान् के रूपका समावेश इस अध्याय की विशेषता है । लघु, गुरु एवं यति आदि की आर्हद् धर्मानुसार बड़ी सटीक व्याख्या की गई है । अन्त में धर्म का स्वरूप इस प्रकार समझाया है--
“पदं श्रुति कटुत्याज्यं दुष्टं वाक्यमसक्रियम् ।
यतः स्याद् ग्राम्य धर्मस्योद्दीपनं ध्रियते न तत् ॥१९॥"
जैसे छन्द शास्त्र में कर्ण कटु एवं असंस्कृत दुष्ट वाक्य को त्याग दिया जाता है, जिससे गंवारूपन झलके ऐसे पदों का चयन नहीं किया जाता है उसी प्रकार व्यवहार में प्रयुक्त-अश्लील, अपशब्द, दुष्टवचन एवं असंस्कृत भाषा को त्याग देना चाहिये । प्रारंभ में आत्मा सर्वगुरु मकार रूप है पर वह उपयोग से सर्वलघुरूप नकारमय बन कर अर्हत् स्वरूप बन जाती है । इस प्रकार अहंद्गीता में अहंद धर्म की विशद व्याख्या की गई है जिसका सार प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ में दिया जा रहा है। ॐ शान्ति शान्ति शान्ति ।
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