Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 7 नहीं हुआ हे जंबकि "आयार" में "च" लुप्त है। इसके अतिरिक्त "आचाल" में मागधी भाषा के नियम के अनुसार "र" का "ल" हुआ है। "आगाल" शब्द भी "आयार" से भिन्न मालूम नहीं पड़ता। "य" तथा "ग" का प्राचीन देवनागरी लिपि की अपेक्षा से भी इनका मिश्रण असम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में "आयार" के बजाय "आगाल" का वाचन संभव है। इसी प्रकार "आगाल' एवं 'आगर" भी भिन्न मालूम नहीं पड़ते। "आगर" शब्द के "गा" के "आ" का हस्व होने पर "आगर' एवं 'आगार" के "र" का "ल' होने पर "आगाल'' होना सहज है। “आइण्ण (आचीर्ण) नाम में "चर" धातु के भूतकृदंत का प्रयोग हुआ है। इसे देखते हुए "आयार'' के अन्तर्गत इस नाम का भी समावेश हो जाता है। इस प्रकार आयार, आचाल, आगाल, आगर एवं आइण्ण भिन्न-भिन्न शब्द नहीं अपितु एक ही शब्द के विभिन्न रूपान्तर हैं। आसास, आयरिस, अंग, आजाति एवं अमोक्ष शब्द आयार शब्द से भिन्न है। इनमें से "अंग" शब्द का सम्बन्ध प्रत्येक के साथ रहा हुआ है जैसे आयारअंग अथवा आयारंग इत्यादि। आयार-आचार सूत्र श्रुतरूप पुरूष का एक विशिष्ट अंग है अतः इसे आयारंग-आचारांग कहा जाता है। "आजाति'' शब्द स्थानांग सूत्र में दो अर्थों में प्रयुक्त हुआ है- जन्म के अर्थ में व आचारदशा नामक शास्त्र के दसवें अध्ययन के नाम के रूप में। संभवतः आचारदशा व आचार के नामसाम्य के कारण आचारदशा के अमुक अध्ययन का नाम समग्र आचारांग के लिए प्रयुक्त हुआ हो। आसास आदि शेष शब्दों की कोई उल्लेखनीय विशेषता प्रतीत नहीं होती।
. प्रथम श्रुतस्कन्ध के अध्ययन :- नवब्रह्मचर्यरूप प्रथम श्रुतस्कन्ध के नौ अध्ययनों के नामों का निर्देश स्थानांग व समवायांग में उपलब्ध है। इसी प्रकार का अन्य उल्लेख आचारांगनियुक्ति (गा 31-2) में भी मिलता है। तदनुसार नौ अध्ययन इस प्रकार हैं :- 1. सत्थपरिण्णा (शस्त्रपरिज्ञा), 2. लोगविजय (लोकविजय), 3. सीओसणिज्ज (शीतोष्णीय), 4. सम्मत्त (सम्यक्त्व), 5. आवंति (यावन्त), 6. धूअ (धूत), 7. विमोह (विमोह अथवा विमोक्ष), 8. उवहाणसुअ (उपधानश्रुत), 9. महापरिण्णा (महापरिज्ञा)। नंदिसूत्र की हरिभद्रीय तथा मलयगिरिकृत वृत्ति में
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