Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 311
________________ 282 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा (iii) इच्चेआई वावीसं सुत्ताइं तिकणइयाइं तेरासिय सुत्त परिवाडीए । (vi) इच्चेआई वावीसं सुत्ताइं चउक्कणइयाई स-समय- सुत्त परिवाडीए । एवामेव सपुव्वारेण अट्ठासीति सुत्ताइं भवंती - तिमक्खयाइं । छकखंडागमस्स धवलाटीगाएं एसो णिछिट्टो वि अत्थि णं सुत्तस्स अट्ठासी अहियारेरसु चदुण्ह-महियारणमत्थ- णिद्देसो । पढमो अबंधयाणं विदियो तेरासियाण बोद्धव्वो । तदियो य णियदि-पक्खे हवदि चदुत्थो स-समयम्मि॥ (ग) पढमाणियोगो :- पंच सहस्स– पदेहि (5000 ) पुराणं वण्णेदि - बारस-विहं पुराणं जगदिट्टं जिणवरेहि सव्वेहिं । तं सव्वं वण्णेदि ह जिणवंसे रायवंसे य ।। हु पढमो अरहंताणं विदियो पुण चक्कवट्ठि - वंसों दु । विज्जाहराणं तदियो चदुत्थयों वासुदेवाणं ।। Jain Education International चारण-वंसो तह पंचमो दु छट्टो य पण्ण-समणाणं। सत्तमो कुरुवंसो अट्टमओ तह य हरिवंसो || णवमो य इक्खुयाणं दसमो वि य कासियाण बोद्धव्वो। घाईणेक्कारसमो वारसमो णाहवंसो दु|| समवायंगम्हि जो अणुओगस्स णिरुवणो अत्थि तस्स दुविहो पण्णत्तोमूल-पढमाणुओगे य गंडियाणुओगे। मूल-पढमागुओगे- एत्थ णं अरहंताणं भगवंताणं पुव्वभवा देवलोग - गमणाणि आउं चवणणि जम्मणाणि अ अभिसेया रायवर - सिरीओ सीयाओ पव्वज्जावो तवा य भत्ता केवलणाणुप्णाया अ तित्थ - पवत्तणाणि अ संघणणं संठाणं उच्चत्तं आउं वन्नविभागो सीसागणा गणहरा य अज्जा पवत्तणीओ संघस्स अउव्विहस्स जं वावि 1 धवला पु.1, पृ. (13) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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