Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 291
वेसद-पदेहि (20989200)
जलगमण- जलत्थंभण-कारण-मंत-तंत-तवच्छरणाणि वण्णेदि। (ख) थलगया- तेतिएहि चेब पदेहि (20989200) भूमिगमण-कारण
मंत-तंत-तवच्छरणाणि वत्थुविजं भूतिसंबंधमण्णं वि सुहासुह-कारंण
वण्णेदि। (ग) मायागया- तेतिएहि चेव पदेहि (20989200) सीय-हय-हिरणादि
रूवा-यारेण परिणमण-हेदु-मंत-संत-तवच्छरणाणि चित्त-कडु
लेप्प-लेण-कम्मादि-लक्खणं च वण्णेदि। (च) आयासगया- तेतिएहि चेव पदेहि (20989200) आगास-गमण
णिमित्त-मंत-तंत-तवच्छरणाणि वण्णेदि। चूलिया सव्व-पद-समामो दस-कोडियो एगूण पंचास-लक्ख- छायाल-सहस्स पदाणि (104946000)।
दुवालसंगम्हि वारस-अंगं दिट्टिवादो। अस्सिं च अणेदविहवादाणं वियाराणं वण्णणं वित्थरेणं अत्थिा जेहिं अरहंतेहि भगवंतेहिं उप्पण्ण-णाण-देसणधरेहि तलुक्कपुज्ज-णिरिक्खिद-महिद-पूजिदेहिं तीय-पडुप्पण्ण-मणागद-जाणएहिं सव्वण्हूहिं सव्वदरिसीहिं पणीदं सम्मसुदं दुवालसंग। दुवालसंग-गणि-पिडगं चोद्दसपुव्वधारीणं सम्मसुदं पण्णत्तं, अभिण्णदसपुव्विस्स सम्मसुदं तेणं परं भिण्णेसुं भयणा। (नन्दी सू. पृ. 152) . दिट्ठिवादस्स संखेन्जा वायणा अणुयोगदारा वि, संजेज्जा वेदा, संखेन्जा सिलोगा संलखेज्जाओं पडिवत्तीओ, संखिज्जाओ णिज्जुत्तीओ, संखेन्जओ संगहणीओ। वारसंगे एग सुदक्खंधो चोद्दसपुव्वाणि संखेज्जा वत्थू संखेज्जा पाहुडादी उवदिस्सर्जति दसिजति परूविजंति वादंसिर्जति जिणपण्णत्ता सव्वे भावा।
- विभागाध्यक्ष जैन विद्या एवं प्राकृत विभाग, सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर
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