Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 322
________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया: 293 इसका पद परिमाण 69 लाख पद था। तृतीय वीर्यप्रवादपूर्व में सकर्म एवं निष्कर्म जीव और अजीव के वीर्य शक्ति विशेष का वर्णन था। इसकी पद सख्या 70 लाख थी। चतुर्थ अस्तिनास्तिप्रवादपूर्व में वस्तुओं के अस्तित्व और नास्तित्व के वर्णन के साथ धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय प्रभृति द्रव्यों का अस्तित्व और आकाशपुष्प आदि के नास्तित्व का प्रतिपादन किया गया था और प्रत्येक द्रव्य के स्व-स्वरूप से अस्तित्व और पर-स्वरूप से नास्तित्व का भी प्रतिपादन था । इसका पदपरिमाण 60 लाख था। पंचम ज्ञानप्रवादपूर्व में मति, श्रुत, अवधि, मनः पर्यव और केवल के भेद-प्रभेदों का विस्तार से विवेचन था। इसकी पद संख्या एक करोड़ थी। छठे सत्यप्रवादपूर्व में सत्यवचन का विस्तार से वर्णन किया गया था। साथ ही उसके प्रतिपक्षी रूप पर भी विस्तार से प्रकाश डाला गया था। इसमे 1 करोड़ और 6 पद थे। सातवें आत्मप्रवादपूर्व में आत्मा के स्वरूप व उसकी व्यापकता, ज्ञातृत्व और भोक्तृत्व सम्बन्धी विवेचन अनेक नयों की दृष्टि से किया गया था। इस पूर्व में 26 करोड़ पद थे। आठवें कर्मप्रवादपूर्व में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि अष्ट कर्मों की प्रकृतियाँ, स्थितियाँ एवं उनके परिणाम व बन्ध के भेद-प्रभेदों का विस्तार से निरूपण था। इस पूर्व में एक करोड़ अस्सी हजार पद थे। नवें प्रत्याख्यानप्रवादपूर्व में प्रत्याख्यान और उनके भेद-प्रभेदों का विस्तार से विश्लेषण किया गया था, साथ ही इसमें आचार संबंधी नियम भी थे। इसमें 84 लाख पद थे। दसवें विद्यानुप्रवादपूर्व में अतिशय शक्ति सम्पन्न विद्याओं, उपविद्याओं और उनकी साधना की विधियों का निरूपण था। जिसमें अंगुष्ठ प्रश्नादि 700 लघुविद्याएँ, रोहिणी प्रभृति 500 महाविद्याएँ एवम् अन्तरिक्ष, भौम, अंग, स्वर, स्वप्न, लक्षण, व्यञ्जन और छिन्न इन आठ महान निमित्तों द्वारा भविष्य को जानने की विधि का वर्णन था। इस पूर्व में 1 करोड़ 80 लाख पद ग्यारहवें अबन्ध्यपूर्व में ज्ञान, तप आदि सत्कृत्यों को शुभ फल देने वाले और प्रमाद -कषाय आदि असत्कृत्यों को अशुभ फलदायक बताया है। शुभाशुभ कर्मों के फल निश्चित रूप से मिलते ही हैं, वे कभी भी निष्फल नहीं होते । अतः इस पूर्व का नाम अबन्ध्यपूर्व था। इसकी पदसंख्या 26 करोड़ थी । दिगम्बर दृष्टि से ग्यारहवें पूर्व का नाम कल्याणवादपूर्व था, जिसमें तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव और प्रतिवासुदेव के गर्भावतरण का उत्सव, तीर्थंकर नामकर्म का उपार्जन करने वाली Jain Education International For Personal & Private Use Only थे। www.jainelibrary.org

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