Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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176 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
जिन व्रतों का पालन किया जाता है वे श्रावकाचार कहलाते हैं। उपासकदशांग में 5 अणुव्रतों, 7 शिक्षाव्रतों, 11 प्रतिमाओं तथा संल्लेखना इन सबको श्रावकाचार कहा गया है।" इसके पूर्ववर्ती आगमों में भी श्रावकाचार का उल्लेख मिलता है परंतु कुछ भिन्न रुप में जैसे-स्थानांग में 5 अणुव्रतों का नामोल्लेख है जबकि समवायांग में 11 प्रतिमाओं का विवरण उपलब्ध होता है। आवश्यकसूत्र में 12 व्रतों, उसके अतिचारों तथा 11 प्रतिमाओं का विवरण मिलता है। तत्वार्थसूत्र में 12 व्रतों के साथ-साथ इनके अतिचारों; योगशास्त्र में 12 व्रतों का उल्लेख मिलता है। इसी प्रकार आचार्य कुंदकुंद रचित चारित्रप्राभृत, वसुनंदि श्रावकाचार, सागारधर्मामृत" जैसे महत्वपूर्ण दिगम्बर मान्य ग्रंथों में भी श्रावकाचार रुपी व्रतों का विवरण उपलब्ध होता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि जैनग्रंथों में श्रावकाचार की एक सुदीर्घ परम्परा रही है जिन पर जैनाचार्यों ने पर्याप्त चिंतन किया है।
पाँच अणुव्रत : - जैनमत में महाव्रत एवं अणुव्रत के रुप में व्रतों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है। महाव्रत श्रमण आचार से संबंधित है जबकि अणुव्रत गृहस्थ उपासकों की आचारचर्या है। अणुव्रत 'अणुव्रत' इन दो शब्दों के योग से बना है। अणु का अर्थ छोटा होता है तथा व्रत का अर्थ नियम, अस्तु अणुव्रत का शाब्दिक अर्थ हुआ छोटा या अल्प व्रत या नियम। जैन परम्परा में किसी भी कर्म का विधान तीन योग और तीन करण से किया जाता है। जिन व्रतों का तीन योगों
और तीन करणों से पालन किया जाता है वे महाव्रत कहलाते हैं और जिन्हें इस रुप में परिपालन नहीं किया जाता है उन्हें अणुव्रत कहते हैं। अणुव्रत के स्वरुप को स्पष्ट करते हुए आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं- किसी गृहनिरत श्रावक में अनुमोदना को छोड़कर शेष छह भंगों के द्वारा स्थूल हिंसादि से निवृत होना अहिंसा आदि अणुव्रत है।' आचार्य शिवार्य अणुव्रत की विभिन्न कोटियों को स्पष्ट करते हुए कहते हैंप्राणवध, मृषावाद, चोरी, परदारगमन तथा परिग्रह का स्थूल त्याग ही अणुव्रत है।
प्रायः अणुव्रत के संबंध में यह भ्रांत धारणा प्रचलित है कि अणुव्रत छोटा व्रत है जबकि यह सत्य नहीं है। यद्यपि अणु का शाब्दिक अर्थ छोटा होता है तथापि व्रत अपने आप में छोटा या बड़ा नहीं होता है। अपूर्ण और पूर्ण के अंतर से ये अणुव्रत और महाव्रत कहलाते है। पूर्णता और अपूर्णता का यह भाव व्रत के आंशिक या पूर्ण
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