Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 306
________________ दिद्विवादणुचिंतणं-दृष्टिवादः एक अनुचिंतन - डॉ. उदयचन्द जैन दिट्ठिवाए णं सव्व-भावपरूवणया अधविज्जति। - (सम पृष्ठ191) "दिट्ठिवाए णं सव्व-भावपरूवणा अधविज्जइ।" - (नन्दी सूत्र 56) जिस श्रुत में सब भावों/अर्थो/पदार्थों की प्ररूपणा की जाती है, वह दृष्टिवाद है। अंग-आगमों में उसका नाम अन्त में लिया जाता है। स्थानांगसूत्र के दशम स्थान में महावीर द्वारा स्वसमय और परसमय के निरूपण करने वाले द्वादशांक गणपिटक का व्याख्यान/प्रज्ञापन/ प्ररूपण/दर्शन/निदर्शन/उपदर्शन इस प्रकार किया है : समणे भगवं महावीरे एगं च ण महं चित्त-विचित्तपक्खगं पडिबुद्धे :दुवालसंगं गणिपिडगं आघवेति पण्णवेति परूवेति दंसेति णिदंसेति उवदंसेति तं जहाआयारं (सूयगडं ठाणं समवायं विवाहपण्णत्ति णायधम्मकहाओ उवासगदसाओ अंतगडदसाओ अणुत्तरोवाइयदसाओ पण्हाबागरणाइं विवागसुर्य) दिट्रिवायं।' (10/103) - उक्त आगमों की गणना अर्थपदों में की जाती है, इसलिए ये अंगश्रुत कहलाते हैं, जिसका प्रमाण संख्यात है।' संघाद-पडिवत्ति –अणिओगद्दारेहि विं संखेज्जमंगसुदं अवा अणंत। पमेयमेत्तंगसुद -वियप्युवलंभादो। वत्तव्व स-पर-समया अाहियारो बारसविहो।'2 अस्सि च दादसमंगं दिटिप्पवादो त्ति। ____ दृष्टिवाद को धवलाकार वीरसेन आचार्य ने दृष्टिप्रवाद' भी कहा है। नन्दीसूत्र की हरिभद्र वृत्ति में दृष्टिवाद को दृष्टिपात भी कहा है: "दृष्टिवादेन दृष्टिपातेन दृष्टिवादे दृष्टिपाते वा सर्वभावप्ररूपणा आख्यायते" ___ दृष्टिवाद/दृष्टिपात से सभी भावों/पदार्थों की प्ररूपणा होती है अथवा दृष्टिवाद या दृष्टिपात में सर्वभाव की प्ररूपणा का कथन किया जाता है। दृष्टिवाद की व्युत्पत्ति :(1) दिट्ठीओ वददीदि दिट्ठिवादं ति।' ___ इसमें दृष्टियों/विचारों का कथन है, इसलिए दृष्टिवाद है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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