Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text ________________
प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 279
(iii) जबूदीवपण्णत्ती- तिण्णि-लक्ख-पंचवीस -पद-सहस्सेहि
(325000) जंबूदीवे णणविह-मणुयाण-भोग-कम्म-भूमियाणं अण्णेसिंच पव्वद-दह-णइ-वेझ्या- बंसावासकट्ठिम- जिणहरादीणं वण्णणं
कुणदि। (vi) दीवसायर-पण्णत्ती- बावण्ण-लक्ख-छतीस-पद- सहस्सेहि
(5236000) उद्धार-पल्लपमाणेण दीवसायरपमाणं अण्णं पि
दीवसायरंतब्भूदस्थं बहुभेयं वण्णेदि। (v) वियाहपण्णत्ती- चदुरासिदी-लक्ख-छत्तीस-पद- सहस्सेहि
(8436000) रूवि-अजीवदव्वं अरूवि-अजीवदव्वं भवसिद्धिय-अ भवसिद्धिय-रासिंच वण्णेदि। दिट्टिवादस्स अत्थाहियारो- (1) सुत्तं अट्ठासीदि-लक्ख पदेहि (8800000)
एससु पदेसुं कि वण्णणं अत्थि - (क) जीवो अबंधओ अलेसओ अकत्ता भोत्ता णिग्गुणो सव्वगओ अणुमेत्तो। (ख) णत्थि जीवो, जीवो चेव अत्थि पुढवियादीणं पंच भूद-समुदएणं जीवो
उप्पज्जदि, णिच्चेदणो (चेदणरहिदो) णाणेण विणा सचेदणो णिच्चो अणिच्चो अप्पे त्ति वण्णेदि। अस्सि विभिण्ण-वादाणं वण्णणंतं जघा (2) तेरासिंय - गोसालप्पवत्तिदा आजीविगा पासंडिणा या ते सव्वं वत्थु ति/ते तयप्पणं इच्छंति :(i) जीवो, अजीवो जीवाजीवा (ii) लोगा, अलोगा, लोगालोगा य। (iii) सदेव सदसेव सदसदेव।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338