Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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276 : अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
खांसी, स्वास, मुख सूजना, नाक सूजना, नाक-कान-गला रूकना, घाव होना, थिव-थिव होना, कीड़े पड़ना आदि कई रोग विपाकसूत्र में वर्णित हैं।
वैद्य :- रोग का जानकार वैद्य होता था, जिसे चिकित्सक भी कहा गया। अंजू नामक दसवें अध्ययन में वैद्य एवं वैद्य पुत्र का उल्लेख है। उंवरदत्त में वैद्य के तीन भेद किए हैं- सुहस्त, शिवहस्त व लघुहस्त। इसके अतिरिक्त रोग के उपचार आहारदोष, शारीरिक दोष, श्रेणित दोष आदि का भी कथन किया गया है।
इस प्रकार विपाकसूत्र श्रमण परम्परा का ज्ञान-विज्ञान का ग्रंथ है। इसके मूल में कथा व कथा के उद्देश्य के साथ-साथ सभी प्रकार के विवेचन इस बात की प्रामाणिकता को व्यक्त करते हैं कि यह शुभ एवं अशुभ परिणामों का सूत्र ही नहीं, शुभ से स्वस्थ जीवन व अशुभ से रोगजन्य असाध्य बिमारियाँ, विविध दंड, नीच कर्म एवं विविध दुख प्राप्त होने का कथन करता है। विपाकसूत्र के समग्र विवेचन से स्पष्ट है कि यह ग्रन्थ व्यक्ति को दुष्कर्मों से निवृत्ति और सद्कर्मों की ओर प्रवृत्ति हेतु प्रेरित करने वाला महत्वपूर्ण अंग ग्रंथ है।
प्रभारी एवं शोधाधिकारी आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान पद्मिनी मार्ग, उदयपुर - 313 001 (राज.)
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