Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
272 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
नन्दिवर्धन, मथुरा नगरी के राजा श्रीदास और रानी बंधुश्री का पुत्र था जो अत्यन्त ही कृतघ्नी बन जाता है। वह जेल का जेलर भी बनता है। उस समय बिना प्रयोजन ही वह लोगों को कष्ट देता है। वही दुष्परिणामी पिवृवध का दुःसंकल्प करने वाला व्यक्ति एक पर्याय में मत्स्य भी होता है। इसके अनन्तर कुछ शुभ भावों के कारण वह मनुष्य जन्म को प्राप्त करता है तथा यहीं से चारित्र मार्ग पर बढ़ता है। उम्बरदत्त और शोरियदत्त के जन्म जन्मान्तर अत्यन्त ही कष्टदायी हैं। देवदत्ता और अंजू का जीवन भी अत्यन्त दुःखमय है।
सुखविपाक :- सुखविपाक नामक द्वितीय श्रुतस्कंध में अच्छे कर्मों के परिणामों पर विचार किया गया है। जो भी व्यक्ति मनुष्य जन्म प्राप्त कर अच्छे कर्म करता है, धर्मध्यान करता है, निर्ग्रन्थ प्रवचन पर श्रद्धा करता है, वह चारित्र धर्म को बढ़ाता है और निम्न विशेषताओं को प्राप्त करता है :
इष्ट
इष्टरूप
कान्त
कान्तरुप
प्रिय
मनोज्ञ - मनोज्ञरूप
मनोम-मनोमा
सोम
सुभग
स्वरूप
प्रियदर्शन
:
Jain Education International
:
:
:
उचित कार्य, योग्य कार्य ।
शरीर की आकृति, आकार आदि की मनोरमता।
रमणीयता ।
:
सुन्दर स्वभाव।
स्वभाव से ही प्रेम को उत्पन्न करने वाला।
:
: अच्छे से अच्छे रुप वाला।
अत्यन्त नम्र एवं मृदु स्वभाव वाला।
: समभाव एवं चंद्रमा के सदृश्य स्वरूप वाला।
: ललनाओं को प्रिय लगने वाला।
: उत्तम रुप, आकार एवं माधुर्य से परिपूर्ण । : समस्त जनों के लिए दर्शनीय।
सुखविपाक का फल :- सुखविपाक में अच्छे कर्म करने वाले निम्न दस श्रावकों के वृत्तान्त दिये गये हैं- सुबाहु, भद्रनन्दी, सुजात, सुवासव, जिनदास, धनपति, महाबल, भद्रनन्दी, महचन्द्र और वरदत्त, ये दस ऐसे गृहस्थ हैं जो इष्ट, इष्टरूप,
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org