Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan

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Page 300
________________ प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 271 गुप्त रुप में रखकर पालन-पोषण किया गया। इस दुख विपाक के दारूण दृश्य पर विचार करके विपाकसूत्र में इस बात की ओर संकेत किया कि जो व्यक्ति रूपवान होकर भी दूसरे का निन्दक बनता है वह अशुभ कर्मों के कारण मनुष्य जन्म लेकर भी नारकीय वेदनाओं का अनुभव करता है। मृगापुत्र के पूर्व जन्म के बाद भविष्य पर भी विचार किया गया और यह कथन किया गया कि कई योनियों के पश्चात् मृगापुत्र सुपतिष्ठपुर नगर में जन्म लेगा और युवावस्था को प्राप्त होकर वहीं अनगार धर्म को प्राप्त होगा। मृगापुत्र के दीर्घकालिक भव भ्रमण में मनुष्य पर्याय ही नहीं है अपितु हिंसक सिंह पर्याय, सरीसृप पर्याय, स्त्री पर्याय, जलचर पर्याय, स्थलचर पर्याय आदि समस्त पर्याय प्राप्त करने के उपरांत भी मृगापुत्र ने दुख ही दुख प्राप्त किया। मृगापुत्र के अतिरिक्त उज्झितक, अभग्नसेन आदि की कथाएँ असीम दुखों का वर्णन करती हैं। उज्झितक एक रूपवान बालक था, जो कुरुप हो गया था, उसकी करूपता का मूल कारण पूर्व जन्म का कर्म ही था। अभग्नसेन एक राजपुरूष था, जो कृतघ्न था। उसने आठ लघुपिताओं (चाचाओं) को कई प्रकार से प्रताड़ित किया। उन्हें मांस खिलाया, रूधिरपान आदि कराया। ऐसा ही अभग्नसेन भी अपने पापकर्मों के कारण निन्दनीय कार्य को प्राप्त होता है। वह विविध पर्यायों को धारण करता है, सूली पर चढ़ाया जाता है, प्रथम रत्नप्रभा नामक नरक को प्राप्त होता है, वहीं एक अन्य जन्म में वह शूकर भी बनता है। शकट, एक सार्थवाह का पुत्र था जो अत्यन्त रुपवान भी था परन्तु यह कहा जाता है कि पूर्व जन्म में उसने कई प्रकार के पशुओं · को एक बाड़े में बंधक बनाकर रखा था उनसे वह मांस आदि प्राप्त करता था, वह सप्तकुव्यसनी था। वह चांडाल कुल में भी उत्पन्न हुआ। जलचर जीव के रुप में वह मत्स्य बना। बृहस्पतिदत्त, सोमदत्त पुरोहित का पुत्र था, वसुदत्ता माता उस पुत्र प्राप्ति से अत्यन्त हर्षित थी परन्तु वही बालक शूद्र कार्य करने लगता है जिसके कारण भव भवान्तर में दुख को प्राप्त होता है, वह हस्तिनापुर नगर में हरिण भी बनता है। व्याघ द्वारा मारा जाता है। इसके अनन्तर वह श्रेष्ठी कुल में भी उत्पन्न होता है, वहाँ से मनुष्य जन्म के बाद वह महाविदेह को भी प्राप्त होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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