Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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270: अंग साहित्य : मनन और मीमांसा
सुयक्खंधा पन्नत्ता, तं जहा-दुहविवागा य सुहविवागा य" (वि.सू. पृ. 9) अर्थात् विपाकसूत्र के दो श्रुतस्कंध हैं- दुःखविपाक और सुखविपाक। जिन्हें समवायांगसूत्र में सुक्कड-दुक्कड कहा गया है। नन्दीसूत्र के विवेचनकर्ता ने दुखविपाक व सुखविपाक विपाक के ये दो भेद किये हैं। स्थानांगसूत्र में भी शुभ और अशुभ ये दो भेद किए गये हैं। अर्थात् यह तो निश्चित है कि विपाकसूत्र पुण्य और पोप इन दोनों ही कर्मों के फल पर विचार करता है। विपाकसूत्र में सर्वप्रथम दुखविपाक पर विचार किया गया तत्पश्चात द्वितीय श्रुतस्कंध में सुखविपाक के विषय में कथन किया गया है।
विपाकसूत्र का प्रतिपाद्य विषय - "पुण्ण-पाव-कम्माणं विवायं" अर्थात् पुण्य एवं पाप कर्मों के फल की दशा या अवस्था का चित्रण करना इसका प्रमुख उद्देश्य है। विपाकसूत्र में दुःख एवं सुख दोनों के फल विवेचन में कथाओं का आश्रय लिया गया है। कथाओं में भी उनके पूर्वजन्म का विवेचन, वर्तमान भव और भविष्य के फल आदि पर विचार किया गया है। जैसा कि विपाकसूत्र का प्रतिपाद्य विषय है, उसी के अनुसार अशुभ और शुभ, दुःख और सुख रुप कर्म प्रकृतियों का आश्रय लिया गया है। पापकर्म दुःखविपाक है और पुण्यकर्म सुखविपाक है।
दुःखविपाक का विश्लेषण :- "दुहविवागाणं दस अज्झयणा" अर्थात् दुखविपाक के दस अध्ययन हैं।
मियापुत्ते य उज्झियए अभग्गा सगडे वहस्सइ नन्दी।
उंवर सोरियदत्ते य देवदत्ता य अंजु य।। मृगापुत्र, उज्झतक, अभग्नसेन, शकर, वृहस्पति, नन्दीवर्धन, उंवरदत्त, शोरियदत्त, देवदत्ता और अंजू ये दस कथानक दुखविपाक रुप प्रथम श्रुतस्कध में वर्णित हैं।
प्रथम कथानक मृगापुत्र का है जो क्षत्रियकुमार है। उसकी माता का नाम मृगा है और पिता का नाम विजय है। वह जन्म से ही अवयवहीन अंधा, गूंगा, बहरा, लूला और हुंड शरीर वाला था। उसके आकार-प्रकार नाममात्र के थे, इसलिए उसे
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