Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
View full book text
________________
विपाकसूत्र : एक समीक्षात्मक अध्ययन
भारतीय साहित्य की दीर्घ परम्परा है। इस परम्परा में सर्वप्रथम आगम, पिटक या वेदों का नाम लिया जाता है। ये ऐसे ग्रंथ हैं जिनके विषय में यही कहा जाता है कि समस्त जीवन विज्ञान, जीवन कला और जीवन की विशेषताएँ इनमें समाहित हैं। चाहे वैदिक साहित्य हो या श्रमण साहित्य, उनमें जितने भी वचन हैं, वे आर्ष वचन हैं, जो प्रामाणिक वचन हैं। इनके वचनों में किसी प्रकार का विरोध नहीं हैं। जैन साहित्य में आर्ष को विशेष महत्व दिया गया है और यह भी कथन किया गया है कि आर्ष वचन की परम्परा का विच्छेद नहीं होता है क्योंकि वे सर्वज्ञ वचन हैं, वे दोष और आवरण से रहित हैं। अरहंत परमेष्ठी अर्थरूप से व्याख्यान करते हैं तथा निर्मल बुद्धि के धारक अतिशय गुणों से युक्त गणधर देव उन्हें सूत्रबद्ध करते हैं। उन सूत्रों में ज्ञान-विज्ञान का समावेश होता है। वे ज्ञान-विज्ञान के सूत्र अंग प्रविष्ट के नाम से विख्यात हैं।
डॉ. सुरेश सिसोदिया
अंग प्रविष्ट के अर्थाधिकार बारह हैं। गणधर ग्रंथित सूत्रों का उल्लेख अर्थाधिकार के रुप में किया जाता है। सिद्धान्त ग्रंथों आदि में पर्याप्त प्रकाश डालते हुए उनके भेद भी किए हैं। उनकी प्रामाणिक संख्या भी दी है और यह भी प्रतिपादित किया है कि अंग प्रविष्ट स्वसमय और परसमय इन दोनों का प्रतिपादन करते हैं। इनमें चार करोड़ पंद्रह लाख दो हजार पद हैं। आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकाध्यन, अतकृत्दशा, अनुत्तरोपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाकसूत्र ये ग्यारह अंग ग्रंथ के कुल पदों का उक्त जोड़ है।
Jain Education International
विपाकसूत्र का स्थान :- आगम साहित्य के दो विभाग किए जाते हैं- सूत्रागम और अर्थागम। मूल रुप से जो भी सूत्र कहे गए हैं, वे गणधर द्वारा सूत्र रूप में हैं। उन्हें द्वादशांग की संज्ञा दी गई है । द्वादशांगों में विपाकसूत्र का ग्यारहवाँ स्थान है। विपाकसूत्र में एक करोड़ चौरासी लाख पद है। पुण्ण - पाव - कम्माणं- विवायं (ष.1/108) अर्थात् विपाकसूत्र नामक अंग आगम में पुण्य और पाप कर्मों के फलों का वर्णन है।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org