Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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प्रो. सागरमल जैन एवं डॉ. सुरेश सिसोदिया : 273
क्रांतरूप आदि वाले थे। सुबाहु नामक श्रावक अत्यन्त बलशाली था वह बहत्तर कलाओं में प्रवीण तथा विषय भोगों में भी आसक्त था। किसी समय उस श्रावक ने धर्मदेशना सुनी। उसने बारह व्रत के स्वरूप पर विचार किया, फिर उन्हें अंगीकार कर लिया। वह जिज्ञासु बन गया तथा दान देने में श्रेष्ठ माना जाने लगा। दानों में भी आहारदान की उदारता की प्रसिद्धि के कारण वह अत्यन्त लोकप्रिय हुआ। वही सुबाहु साधुधर्म स्वीकार करता है। भद्रनन्दी यथानाम तथागुण वाला था। उसने भी श्रावक धर्म स्वीकार किया और विधिवत् दुखों का अन्त करने के लिए मुक्तिमार्ग को अपनाया। आहारदान में निपुण सुजात कुमार, सुवासवकुमार, जिनदास, धनपति, महाबल, भद्रनन्दी, महाचन्द्र और वरदत्त आदि ऐसे श्रावक हैं, जिन्होंने न केवल श्रमणोपासक बनकर आहारदान दिया, अपितु स्वयं श्रमण मार्ग अंगीकार किया।
विपाकसूत्र की समीक्षा :- विपाकसूत्र में कर्म, कर्मफल और इसके परिणाम का विशेष रुप से विवेचन हुआ है परन्तु इस आगम में निम्न महत्वपूर्ण तथ्य भी हैं :
. ऐतिहासिक तथ्य :- महावीर, सुधर्म, जम्बूस्वामी आदि के साथ-साथ दस दुख विपाक के पुरूषों और दस ही सुख विपाक के पुरूषों का इसमें उल्लेख है।
शासन व्यवस्था :- चम्पानगरी और उसके विविध प्रकार के शासकों का उल्लेख इस ग्रंथ में हुआ है। धार्मिक दृष्टि से जिनशासन का एवं राजनैतिक दृष्टि से अलग-अलग व्यवस्थाओं का उल्लेख किया गया है। राजा, राजपुत्र, युवराज, राज्याभिषेक, अंतःपुर आदि का इसमें वर्णन हुआ है।
न्याय व्यवस्था :- अभग्नसेन के प्रसंग में चोरों द्वारा चुराई गई वस्तुओं के लिए क्या दण्ड होना चाहिए, इसका उल्लेख करते हुए कथन किया गया है कि चोर को ग्रामघात एवं नगरघात के कारण पैरों व हाथों में जंजीर डाली जाए। चोरपल्ली चोरों का स्थान था। उस स्थान का दडंनायकों के गुप्तचरों द्वारा पता लगाया गया और उन स्थानों को या मार्गों को घेर लिया गया, जहाँ से चोर आते थे। उन्हें पकड़ा गया, बांधा गया तथा उनके अपराध अनुसार उन्हें सजा भी दी गई।
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