Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa
Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya
Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan
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186 : अंग साहित्य मनन और मीमांसा
गुणव्रतों के संबंध में प्रायः ग्रंथों में दिग्व्रत, भोगोपभोग और अनर्थदंडविरमण यही क्रम पाया जाता है परंतु यहाँ गुणव्रत के विवेचन में इस क्रम में परिवर्तन करते हुए अनर्थदण्ड को प्रथम स्थान पर रखा है, द्वितीय पर दिग्व्रत तथा अंतिम स्थान पर उपभोग परिभोग परिमाणव्रत है। यह क्रम रखने के पीछे कोई विशेष कारण नहीं है लेकिन उपासकदशांग (मधुकरमुनि द्वारा संपादित ) गाथा अनुक्रम 1/11 में महावी की धर्मदेशना में अगार व्रत के अंतर्गत 3 गुणव्रतों का जो उल्लेख है उसमें इस अनुक्रम का पालन हुआ है (... तिणि गुणव्वयाई तं- जहा ... अणत्थदंडवेरमणं, दिसिव्वयं, उवभोग परिभोग परिमाणं ।) बाद में इसी ग्रंथ में जब अतिचारों का उल्लेख हुआ है तो अनुक्रम क्रमशः- दिग्व्रत, उपभोग - परिमाणव्रत और अनर्थदंडविरण मिलता है 84 ।
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चार शिक्षाव्रत :- श्रावक के द्वादश व्रतों में शिक्षाव्रत का अपना एक अलग महत्व है। यही एक ऐसा श्रावक व्रत है जिसका अभ्यास बार-बार करना पड़ता है। इसके पूर्व वर्णित अणुव्रत और गुणव्रत का ग्रहण जीवन में एक बार ही किया जाता है और इनका अभ्यास भी निरंतर करना पड़ता है। शिक्षाव्रतों की संख्या 4 है :
(क) सामायिक
(ग) प्रौषधोपवास एवं
तत्त्वार्थसूत्र में देशावकाशिक को गुणव्रत तथा भोगोपभोग को शिक्षाव्रत माना गया है।% रत्नकरंडक श्रावकाचार में अतिथिसंविभाग के स्थान पर वैयावृत्य शब्द का प्रयोग मिलता है।7 वसुनंदि ने भोगपरिमाण, उपभोगपरिमाण, अतिथिसंविभाग तथा सल्लेखना को शिक्षाव्रत माना है | 8 सागारधर्मामृत में देशावकाशिक, सामायिक प्रोषधोपवास एवं अतिथिसंविभाग इन चार शिक्षाव्रतों का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार शिक्षाव्रत की संख्या और क्रम को लेकर श्वेताम्बर एवं दिगम्बर मान्य साहित्य में कुछ अंतर अवश्य परिलक्षित होता है। हम इन अंतरों पर विचार न करके 4 शिक्षाव्रते के स्वरुप पर प्रकाश डालने का प्रयत्न करेंगे।
(क) सामायिक :- सामायिक जैन परंपरा की आराधना पद्धति है। इसी
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(ख) देशावकाशिक
(घ) अतिथिसंविभाग।
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